सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व (STR) के अंदर एक बस्ती है विलानकोम्बई. इस आदिवासी बस्ती में 25 छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है. इन बच्चों के माता-पिता इन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं. क्योंकि स्कूल तक पहुँचने के लिए घने जंगल से हो कर गुज़रना पड़ता है. इसके अलावा रास्ते में कम से कम चार नाले भी पार करने पड़ते हैं.
43 परिवारों वाला यह गांव तमिलनाडु में कोंगरपालयम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गुंडेरीपल्लम जलाशय के पीछे घने जंगल के अंदर बसा है. इस बस्ती में पिछले 10 साल से एक ग़ैर आदिवासी संगठन नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट के तहत ट्रेनिंग सेंटर चलाता था.
क्योंकि यहाँ पर कोई प्राइमरी स्कूल नहीं था. केन्द्र सरकार के बाद यह सेंटर बंद कर दिया गया. यह सेंटर 1 अप्रैल 2022 को पूरी तरह से बंद कर दिया गया. इस ट्रेनिंग सेंटर के बच्चों का दाख़िला विनोबा नगर के सरकारी स्कूल में कर दिया गया.
इस ट्रेनिंग सेंटर को बंद करने का निर्देश साल 2020 में आया था. उस समय के स्कूल शिक्षा मंत्री के.ए. सेनगोट्टैयन ने 11 सितंबर, 2020 को कहा था कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल खोला जाएगा. वन विभाग ने स्कूल के लिए 50 सेंट वन भूमि का सीमांकन भी किया था. लेकिन दो साल बीत गए अभी तक तो कोई प्राइमरी स्कूल नहीं बन पाया है.
इस गाँव में रहने वाले सभी परिवार उरली समुदाय के हैं. ये आदिवासी यहाँ पर कई पीढ़ियों से रह रहे हैं. लेकिन इस गाँव के लोगों के लिए एक प्राइमरी स्कूल अभी भी एक सपना है. गाँव के लोगों से बात करते हैं तो वो कहते हैं कि बच्चों को आठ किलो मीटर दूर प्राइमरी स्कूल भेजना मुमकिन नहीं है. क्योंकि छात्रों को जंगल की सड़क से गुजरना पड़ता है.
उनका कहना है कि यह ख़तरा बना रहता है कि जंगली जानवर कहीं बच्चों पर हमला ना कर दे. इसलिए अधिकांश माता-पिता अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से इनकार करते हैं.
केंद्र सरकार या फिर राज्य सरकार जिसके भी आदेश पर बच्चों को ट्रेनिंग सेंटर की बजाए स्कूल में भेजना एक बेहतर फ़ैसला था. लेकिन अफ़सोस की इस फ़ैसले को लागू करने में वैसी मुस्तैदी नहीं दिखाई गई.
बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत कक्षा I से 5 तक के लिए छात्रों के रहने के स्थान से एक किमी के भीतर स्कूल होना चाहिए. जबकि यह कक्षा 6 से 8 के लिए तय किया गया है कि यह सीमा तीन किलोमीटर में स्कूल होना ज़रूरी है.
वैसे तो सरकार को अब तक प्राइमरी स्कूल इस गाँव में बनवा देना चाहिए था. सरकार अपने वादे से क्यों मुकरी, यह तो लंबी खोज और बहस का विषय हो सकता है. लेकिन क्या सरकार इस बस्ती से स्कूल तक बच्चों को लाने और घर तक छोड़ने का इंतज़ाम भी नहीं कर सकती है.
आदिवासी इलाक़ों में साक्षरता दर और स्कूल ड्रॉप आउट एक बड़ा मसला है. आदिवासी परिवार को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करना आसान काम नहीं है. वैसी स्थिति में आदिवासी परिवार अपने बच्चों को आठ किलोमीटर दूर पढ़ने भेजेंगे, यह उम्मीद कोई समझदार आदमी तो नहीं कर सकता है.