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मैसूर के आदिवासी दे रहे हैं ज़िम्मेदार नागरिक होने की मिसाल, शहरी इलाक़ों से कहीं ज़्यादा टीकाकरण हो रहा है यहां

पूरा देश इस समय कोविड वैक्सीन की कमी और उसको लेकर लोगों के बीच झिझक से जूझ रहा है, लेकिन कर्नाटक के मैसूरु ज़िले के आदिवासी इलाक़े में टीकाकरण के आंकड़े उत्साहित करने वाले हैं.

इलाक़े के आदिवासी सभी दावों और शंकाओं को दरकिनार कर वैक्सिनेशन ड्राइव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.

मैसूर ज़िले के आदिवासी पिछले साल के उच्चतम स्पाइक से बचे रहे थे, संक्रमण से बचने के लिए उन्होंने खुद पर प्रतिबंध लगाए थे.

ये आदिवासी समुदाय अब शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक मॉडल में तब्दील हो गए हैं, जहां वैक्सीन की उपलब्धता के बावजूद सरकार आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचने में विफल रही है.

जेनु कुरुबा, सोलीगा और हक्की पिक्की समुदाय मैसूर के हुनसूर ज़िले की आदिवासी बस्तियों में रहते हैं. अधिकारियों के अनुसार, 45 से ज़्यादा उम्र वाले 4825 लोगों में से 1830 को टीका लग चुका है.

इसी तरह, एचडी कोटे तालुक में आदिवासी बस्तियों में रहले वाले 1253 योग्य लोगों में से 956 को टीका लग चुका है.

आदिवासी इलाक़ों में टीकाकरण पर ज़ोर देने के लिए अधिकारियों ने आउटरीच केंद्र बनाए थे, जहां टीके भी लगा जा रहे हैं.

शुरुआत में आदिवासियों के मन में आशंकाएं थीं, और समुदाय के अधिकांश लोग सुबह-सुबह खेतों में और जंगल में काम के लिए निकल जाते थे. इस वजह से टीकाकरण का समय सुबह जल्दी कर दिया गया.

अब आदिवासी बस्तियों के यह केंद्र सुबह 7 से 9 बजे तक चलते हैं, और उसके बाद दिन में नियमित सत्र चलता है.

इसके अलावा आशा कार्यकर्ता, आदिवासी विभाग के अधिकारी, और तालुक अधिकारी टीकाकरण के फ़यदों के बारे में आदिवासियों को जागरूक करने में लगे हुए हैं. आदिवासियों के बीच प्रभावशाली धार्मिक नेताओं की भी मदद ली जा रही है.

आदिवासी कार्यकर्ता और अधिकारी दोनों मानते हैं कि एक मई से जब 18 वर्ष से ज़्यादा के सभी लोगों को टीका लगना शरु होगा तो इन आदिवासियों के बीच टीकाकरण के आंकड़े और बढ़ जाएंगे.

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