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‘एन ऊरु’ – आदिवासी कल्याण की पहल, या उनका शोषण?

जब आप अपनी छुट्टी प्लान करते हैं, तो ज़ाहिर है शहर की भीड़-भाड़ से दूर जाने के बारे में सोचते होंगे. आजकल के व्यस्त जीवन में लोग ग्रामीण जीवन की सादगी तलाशते हैं, और शायद यही वजह है कि इको-टूरिज्म को अब काफ़ी बढ़ावा मिल रहा है.

केरल सरकार ने हाल ही में ‘एन ऊरु’ आदिवासी हेरिटेज विलेज खोला था. इसका उद्देश्य लोगों को राज्य के आदिवासी समुदायों की संस्कृति और जीवन शैली से अवगत कराना है.

यह पर्यटन स्थल एक आदिवासी बस्ती की तरह ही बनाया गया है, और केरल के वायनाड जिले के छोटे से शहर वैतिरी में स्थित है. 25 एकड़ में फैले इस हेरिटिज विलेज में एक कैफेटेरिया है जहां आदिवासी खाना परोसा जाता है. इसी साल जून में खोले गए विलेज में एक एम्फीथिएटर और एक बाज़ार भी है.

मंगलवार को ‘एन ऊरु’ पर ट्विटर पर काफ़ी चर्चा हुई, जब महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इस आदिवासी गांव का एक वीडियो ट्वीट किया. उन्होंने अपने ट्वीट में गांव की तारीफ़ करते हुए कहा कि यह काफ़ी सुंदर है. उन्होंने इसे बनाने के लिए Kerala Tourism को सराहा भी. महिंद्रा ने कहा कि गांव का प्राचीन वास्तुशिल्प डिजाइन बेहतरीन है, जिससे पता चलता है कि  ‘सादगी’ भी बेहतरीन हो सकती है.

आनंद महिंद्रा द्वारा ट्वीट किए गए वीडियो को क़रीब पांच लाख बार देखा जा चुका है. उनकी इस ट्वीट के जवाब में कई लोगों ने केरल सरकार की तारीफ़ की है, लेकिन कुछ लोगों ने सरकार और कॉर्पोरेट को आइना दिखाने की कोशिश भी की है.

केरल में पोस्टेड एक आईएएस ऑफ़िसर, प्रशांत नायर ने महिंद्रा की ट्वीट पर जवाब देते हुए उनका धन्यवाद दिया और बताया कि ‘एन ऊरु’ एक आदिवासी कल्याण परियोजना है जिसे अनुसूचित जनजाति विकास विभाग ने फ़ंड और क्यूरेट किया है. उन्होंने इस प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाने के लिए महिंद्रा का सहयोग भी मांगा.

इसके अलावा आपको कई लोगों के कॉमेंट दिखेंगे, जिन्होंने महिंद्रा की हां में हां मिलाते हुए केरल सरकार के इस प्रोजेक्ट की तारीफ़ की है, और कहा है कि यह प्रकृति के साथ तालमेल का उदाहरण है.

इन सब कॉमेंट्स के बीच आपको एक कॉमेंट ऐसा भी दिखेगा जिसमें ‘एन ऊरु’ जैसी परियोजनाओं से होने वाले नुकसान की बात है. एक ऐसी बात जो कोई नहीं कर रहा.  

@Vishwasshettre के नाम वाले हैंडल ने ट्वीट कर एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही है. वो अपनी ट्वीट में लिखते हैं, “क्या विडम्बना है! वनों के रक्षक अर्थात् सरकार और मान्यता प्राप्त कॉर्पोरेट लोग एक ऐसे क्षेत्र में पर्यटन का प्रचार कर रहे हैं, जो स्पष्ट रूप से एक जंगल था जिसे साफ कर, जिसका अतिक्रमण कर, वनों की कटाई और मॉनिटाइज़ किया गया है. प्रकृति को अछूता छोड़ दिया जाता तो कितना अच्छा होता.”

आप भी इस परियोजना को दो तरीक़ों से देख सकते हैं. या तो सरकार द्वारा आदिवासी कल्याण के लिए की गई कोशिश के रूप में, या फिर जिन आदिवासियों का कल्याण करने की कोशिश की जा रही है, उन्हीं की ज़मीन के शोषण के रूप में.

हालांकि केरल सरकार का यह क़दम मुख्यधारा के समाज को आदिवासियों की जीवनशैली और संस्कृति से रूबरू करवाएगा, लेकिन सरकार की इस पहल का कितना फ़ायदा उन आदिवासियों को होगा, यह सोचने वाली बात है.

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