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टाइगर रिज़र्व में लिखा जाएगा आदिवासी इतिहास, तमिलनाडु के जंगलों की कहानी

अन्नामलाई टाइगर रिजर्व (एटीआर) के अधिकारी इस जंगल की वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के अलावा एक अनोखा काम कर रहे हैं.

इस जंगल में कम से कम 6 जनजातियां रहती हैं. इस जंगल में जो अभी तक टाइगर रिज़र्व के तौर पर ही जाना जाता था, यहाँ पर आदिवासियों की भाषा और संस्कृति को सहेजने का काम किया जा रहा है.  

एटीआर में जल्द ही एक आदिवासी व्याख्या केंद्र और म्यूज़ियम तैयार हो जाएगा.  यहाँ आदिवासियों की संस्कृति, जीवन और इतिहास को प्रदर्शित किया जाएगा. 

आई. अनवरदीन, अन्ना मलाई टाइगर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (कोयम्बटूर सर्कल) और एटीआर के फील्ड डायरेक्टर, आई अनवरदीन की पहल पर यह  इंटरप्रिटेशन सेंटर और म्यूज़ियम बनाया जा रहा है.

फ़िलहाल यह सेंटर टॉपस्लिप में औषधीय पौधों के संरक्षण क्षेत्र की एक ख़ाली पड़ी इमारत में बनाया जा रहा है. 

एटीआर के उप निदेशक अरोकियाराज जेवियर के नेतृत्व में एक टीम ने बाघ अभयारण्य के छह आदिवासी समुदायों, कादर, मुदुवर, मालासर, मलाई मालासर, एरावलर और पुलयार के जीवन से संबंधित कलाकृतियों और संग्रह को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है.

“टाइगर रिजर्व होने के अलावा, एटीआर को एंथ्रोपोलॉजिकल रिजर्व भी कहा जा सकता है. वन विभाग ने अब तक जातीय जनजातियों की संस्कृति और विरासत के दस्तावेजीकरण के लिए बहुत कम काम किया है.

एटीआर के अधिकारियों का कहना है कि यह सेंटर यहाँ के आदिवासी समुदायों की समृद्ध संस्कृति, विरासत और पहचान को प्रदर्शित करेगी. उनके अनुसार, यह केंद्र जनजातियों के लिए उनके योगदान के लिए और जंगलों के संरक्षक होने के लिए एक समर्पण होगा.

अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में रहने वाले आदिवासी समुदायों के बारे में बताया गया है कि पुलयार को छोड़कर, पांच अन्य जातीय जनजातियां कृषि पर निर्भर नहीं हैं,  वे लघु वनोपज एकत्र करते हैं, यानि ये आदिवासी पर्यावारण और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते हैं. 

वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे प्राकृतिक उत्पादों से बने छोटे घरों में रहते हैं. कोयंबटूर और तिरुपुर जिलों में एटीआर की सीमा के भीतर इन छह जातीय जनजातियों की 35 बस्तियां हैं.

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