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ओडिशा: नसबंदी कराने पर पति ने पत्नी को घर से निकाला, बोला- अपवित्र हो गई

ओडिशा के क्योंझर जिले की एक आदिवासी महिला अपने घर में नहीं लौट पा रही. उसकी गलती सिर्फ इतनी है कि उसने अपनी पति की इच्छा के बिना 11 बच्चों के बाद डॉक्टरों की सलाह पर नसबंदी करा ली है.

दरअसल, क्योंझर जिले में एक आदिवासी शख्स रबी देहुरी (57) ने अपनी पत्नी को ग्यारहवीं डिलीवरी के बाद छोड़ दिया क्योंकि उसकी पत्नी ने नसबंदी का ऑपरेशन करा लिया. जबकि डॉक्टर पिछले आठ-नौ साल से उसकी पत्नी को ट्यूबल नसबंदी कराने की सलाह दे रहे थे.

स्थानीय आशा कार्यकर्ता बिजयलक्ष्मी बिस्वाल ने कहा कि उन्होंने परिवार नियोजन के लिए जिले के तेलकोई प्रखंड के सलीकेना पंचायत के डिमिरिया गांव के आदिवासी दंपति को सलाह देने की कोशिश की थी, जब रबी की 36 वर्षीय पत्नी जानकी ने अपने पांचवें बच्चे को जन्म दिया था. रबी और जानकी दोनों दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.

बिस्वाल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हर बार मैंने पति-पत्नी दोनों को स्थायी गर्भनिरोधक के लिए सलाह दी. लेकिन रबी ने इससे बचने की कोशिश की, जबकि जानकी मान गई थी और उसे अपने पति के गुस्से का सामना करना पड़ा जिसके चलते ऑपरेशन नहीं हो सका. मैंने रबी को पुरुष नसबंदी के लिए भी मनाया था लेकिन वह कभी नहीं माने.”

आशा कार्यकर्ता ने कहा, “रबी की आपत्ति के बावजूद मैंने उसकी पत्नी को तेलकोई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाने का फैसला किया, जहां 14 फरवरी को ऑपरेशन किया गया था. उसने 19 जनवरी को 11वें बच्चे को जन्म दिया था.”

ऑपरेशन के बाद जब जानकी अस्पताल से लौटी तो रबी को गुस्सा आ गया और उसने उसे घर में घुसने नहीं दिया. जानकी को अपने बच्चे के साथ घर के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठी रही.

आशा कार्यकर्ता बिस्वाल ने कहा कि जैसा कि जानकी का पति एक विशेष धार्मिक पंथ का पालन करता है, वह अपनी पत्नी पर नसबंदी ऑपरेशन के बाद अपवित्र होने का आरोप लगाता है. उसने अपनी पत्नी पर परिवार का नाम खराब करने का आरोप लगाया.

बिस्वाल ने आगे कहा कि पहली पत्नी की मृत्यु के बाद जानकी से शादी करने वाला रबी इतना निर्दयी था कि प्रसव के दौरान भी वह अपनी पत्नी के साथ अस्पताल नहीं गया. मैं उसकी डिलीवरी के लिए उसे नजदीकी अस्पताल ले गई थी.

बिस्वाल ने बताया कि जिला प्रशासन शनिवार को जानकी को उसके नवजात शिशु के साथ तेलकोई सीएचसी ले गया था. जबकि ब्लॉक स्तर के अधिकारियों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और ग्राम प्रधानों ने रबी को समझाने की कोशिश की कि वह अपनी पत्नी और बच्चों को घर में घुसने दे. घंटों समझाने के बाद रबी अपनी पत्नी को वापस जाने देने को तैयार हो गया.

भले ही रबी ने अपनी पत्नी के नसबंदी पर इतना हंगामा किया हो लेकिन इसी गांव में रहने वाले उसके दो छोटे भाइयों ने अपनी पत्नियों को ट्यूबल नसबंदी कराने की इजाजत दी थी.

आशा कार्यकर्ता ने कहा कि इलाके में हर कोई रबी की तरह नहीं है क्योंकि बढ़ती जागरूकता के कारण आदिवासियों सहित लोग खुशी-खुशी अपनी पत्नियों को दो से तीन प्रसव के बाद सर्जरी कराने की अनुमति देते हैं.

2021 में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के मुताबिक, ओडिशा में कुल प्रजनन दर (प्रति महिला बच्चे) 2016 में जारी एनएफएचएस-4 के 2.1 से घटकर 1.8 हो गई है. और ये परिवार नियोजन के बारे में लोगों में बढ़ती जागरूकता के चलते हुआ है.

लेकिन परिवार नियोजन ही नहीं आदिवासी इलाक़ों में स्वास्थ्य और ख़ासतौर से महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी कई चुनौतियों की बड़ी वजह जागरूकता और प्रचार की कमी है.

इसलिए आदिवासी इलाक़ों में लगातार स्त्री स्वास्थ्य और परिवार नियोजन जैसी योजनाओं का लगातार प्रचार करना ज़रूरी है. यह प्रचार अगर स्थानीय भाषा में होता है तो इसका प्रभाव ज़्यादा होगा.

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