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पूर्वी नागालैंड के आदिवासी संगठन चुनाव प्रचार प्रक्रिया में नहीं होंगे शामिल

पूर्वी नागालैंड विधायक संघ (Eastern Nagaland Legislator Union) ने ईएनपीओ (ENPO) से यह आग्रह किया है की वे पूर्वी राज्य में अपने विरोध प्रदर्शन को रोक दें.

पूर्वी नागालैंड में सभी आदिवासी संगठनों (Eastern Nagaland Protest) को निर्देश दिया गया है कि वे किसी भी चुनाव संबंधी गतिविधियों जैसे कि विभिन्न राजनीतिक दलों के पोलिंग एजेंटों की नियुक्ति, किसी भी चुनाव संबंधी ट्रेनिंग आदि में भाग न लें.

उन्होंने यह भी आग्रह किया की जब तक उनकी मीटिंग नहीं हो जाती, तब तक सरकार के किसी भी कार्यक्रमों और अन्य किसी भी गातिविधियों में शामिल ना हो.

ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (Eastern Nagaland People’s Organization), सभी आदिवासी संगठन सहित फ्रंटल संगठन दशकों से यह मांग कर रहे है कि पूर्वी राज्य के छह जिलों – मोन, तुएनसांग, किफाइर, लोंगलेंग, शेमेटर, नोकलक को मिलाकर एक अलग राज्य बनाया जाए.

क्योंकि इन ज़िलों के लोगों का मानना है की इनके साथ भेदभाव होता आया है और इनके ज़िलो में विकास और अन्य सरकारी काम पूरे नहीं होते.

आदिवासियों का आरोप है की इंदिरा सरकार के समय से पार्टियां उनसे यहीं वादा करती आई है की वे उनकी यह मांग पूरी करेगी, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ.

वहीं हाल-फिलहाल में गृह मंत्री अमित शाह और सत्ताधारी पार्टी द्वारा यह वादा किया गया था कि लोकसभा चुनाव की आर्दश आचार सहिंत लागू होने से पहले उनकी यह मांग पूरी कर दी जाएगी.

लेकिन पार्टियों के इस वादे में कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है. राज्य के पूर्वी इलाकों में सरकार के इसी बरताव को देखते हुए लोगों ने अपना विरोध प्रदर्शन और भी तेज़ कर दिया है.

हालांकि स्कूल, ऑफिस और अन्य कार्यालय में काम ज़ारी है. लेकिन घर और अन्य कई कार्यालयों के छत पर काला झंडा लहरा रहा है. यह काला झंडा इस बात का सबूत है कि लोग सरकार के इस रवैये से दुखी और आक्रोशित हैं

इसके साथ ही उन्होंने यह भी फैसला लिया की जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती. तब तक पूर्वी नागालैंड के आदिवासी सहित अन्य समुदाय के लोग वोट भी नहीं देंगे.

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