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आदिवासी संगठन ने यूसीसी के विरोध में जंतर-मंतर पर प्रर्दशन किया

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता यूसीसी (UCC) की चर्चा अब धीमी पड़ गई है. लेकिन आदिवासी समुदायों की इस बारे में चिंताएं अभी भी कामय हैं.

झारखंड के आदिवासी सहित अन्य राज्यों के आदिवासियों ने शुक्रवार को जंतर-मंतर में धरना प्रर्दशन किया.

आदिवासियों ने कार्यक्रम के ज़रिए यूसीसी कानून के दायरे से आदिवासियों को बाहर रखने की मांग की है. इसके साथ ही मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी और हत्या के मामले के अलावा एंव वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को निरस्त करने की मांग की.

आदिवासी समन्वय समिति ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था.

इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के डॉ सुबोध हंसदा, सुखचंद सोरेन, मोतीलाल सोरेन, झारखंड से आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा, आदिवासी लोहरा समाज के अभय भुटकुंवर, राजी पड़हा प्रार्थना सभा भारत के जलेश्वर उरांव, महाराष्ट्र से विश्वनाथ वाकड़े, भुवन सिंह कोराम सहित उड़िशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, मणिपुर से आदिवासी प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

यूसीसी कानून के दायरे से आदिवासियों को हटाया जाए

कार्यक्रम में शामिल लोगों ने कहा की आदिवासी को यूसीसी से बाहर रखा जाए. क्योंकि यूसीसी के दायरे में आदिवासयों को रखा जाएगा, तो इससे धर्म, संस्कृती और आदिवासियों का अस्तित्व खत्म हो सकता है.

वन संरक्षण कानून और जनगणना में आदिवासी पहचान

आदिवासियों ने केंद्र सरकार से जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम को जल्द से जल्द लागू किया जाए. साथ ही वन में रहने वाले आदिवासियों के लिए काला कानून वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को पूरी तरह से खत्म किया जाए.

आदिवासियों ने अपनी मांग को लेकर पत्र लिखा

आदिवासी समन्वय समिति भारत के द्वारा कई सारी मांगों को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री को मांग पत्र सौपा है.

जिसमें समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से आदिवासियों को बाहर रखने की मांग और जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम की मांग, कुरमी/कुड़मी को एसटी का दर्जा नहीं मिलना चाहिए.

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