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केरल: अट्टपाड़ी में आदिवासी शिशुओं की मौत की वैज्ञानिक जांच की मांग

केरल के अट्टपाड़ी के आदिवासियों ने राज्य सरकार से हर शिशु मृत्यु का वैज्ञानिक अध्ययन करने की मांग की है ताकि समस्या की तह तक पहुंचा जा सके, और कोई समाधान निकाला जा सके.

आदिवासी कार्यकर्ता केए रामू ने आरोप लगाया है कि सरकार ने आदिवासियों की समस्याओं और जरूरतों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया है.

स्वास्थ्य विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी और आदिवासी कार्यकर्ता टीआर चंद्रन ने कहा कि जनजातीय समुदाय की स्वास्थ्य प्रणाली से दूरी को एक बड़ी वजह यह है कि उन्हें कभी इसके फैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया.

“स्वास्थ्य प्रणाली, जनजातीय शिशु मृत्यु और सिकल सेल एनीमिया की वजह से होने वाली मौतों पर कई अध्ययन किए गए, लेकिन इन अध्ययनों की सिफारिशों पर कभी विचार नहीं किया गया,” चंद्रन ने कहा.

हाल ही में ‘इंटरनेशनल जर्नल फॉर इक्विटी इन हेल्थ’ में प्रकाशित मैथ्यू सुनील जॉर्ज, रेचल डेवी और अन्य द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन में पाया गया है, “अट्टपाड़ी में आदिवासी समुदायों को वित्तीय सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के पर्याप्त कवरेज के बावजूद स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच काफी खराब है. सांस्कृतिक रूप से सम्मानजनक देखभाल देने में विफलता, स्वास्थ्य सुविधाओं पर समुदाय आधारित भेदभाव, सेवाओं के वितरण के केंद्रीकरण के साथ-साथ आदिवासियों का स्वास्थ्य प्रणाली के साथ खराब तालमेल बड़ी बाधाएं हैं.”

अध्ययन में कहा गया है, “स्वास्थ्य देखभाल सांस्कृतिक रूप से सुरक्षित, स्थानीय रूप से प्रासंगिक और हस्तक्षेप के सभी चरणों में समुदाय की सक्रिय भागीदारी के साथ होनी चाहिए.”

अट्टपाड़ी में कुपोषण के कारण होने वाली शिशुओं की मौतों का अध्ययन करने के लिए सीपीएम द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और न्यूरोसर्जन डॉ बी इकबाल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय चिकित्सा विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था.

23 मई, 2013 को सीपीएम को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है, “सालों से आदिवासी माताओं और बच्चों की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति की उपेक्षा और समाज द्वारा दिखाई गई उदासीनता और सरकारी अधिकारियों की उपेक्षा अट्टपाड़ी में आदिवासी आबादी के नरसंहार के समान है, जो कुछ दशकों में उनकी आबादी को ही खत्म कर देगा.”

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