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आदिवासी छात्रों का जीवन, एक लंबे संघर्ष की कहानी

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन कोर्स के लिए दाखिला लेने वाले आदिवासी छात्रों को रहने की जगह ढूंढने में मुश्किल हो रही है. पिछले साल नवंबर में कॉलेज शुरू होने के बाद से ये छात्र राज्य आदिवासी विकास विभाग से हॉस्टल की सुविधा की मांग कर रहे हैं.

इन छात्रों ने कई बार राज्य सरकार के आदिवासी विभाग को पत्र लिखा, लेकिन वो अब तक जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.

एक छात्र ने मीडिया को बताया कि बीजे मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले आदिवासी समुदाय के छात्र अपनी पढ़ाई के साथ-साथ शहर में जीवित रहने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं. एक तो उन्हें कोविड की वजह से वित्तीय कठिनाइयां हो रही हैं, ऊपर से उनके लिए रहने की जगह ढूंढना बेहद मुश्किल हो रहा है.

रहने के लिए हॉस्टल आवंटन की मांग इन छात्रों ने कई बार उठाई है, लेकिन राज्य के आदिवासी विकास विभाग द्वारा इसपर कोई सुनवाई नहीं हुई है. कॉलेज पिछले साल 2 नवंबर से शुरू हुआ था और तब से यह छात्र विभाग द्वारा पुणे शहर में छात्रावास की सुविधा की मांग कर रहे हैं.

कई आदिवासी छात्र राज्य भर के दूरदराज़ के इलाकों से यहां पढ़ने के लिए आते हैं. उनकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है, और इसीलिए राज्य के आदिवासी विकास विभाग ने इन छात्रों के लिए हॉस्टल की स्थापना भी की है.

पुणे शहर में दो हॉस्टल हैं, एक लड़कियों के लिए और दूसरा लड़कों के लिए. हालाँकि, इन होस्टलों को कोविड महामारी के चलते क्वॉरंटाइन सेंटर्स में तब्दील कर दिया गया था, जिसकी वजह से अब इन छात्रों को रहने की दूसरी जगह तलाश करनी पड़ रही है.

इन छात्रों के लिए हर बार किराए पर फ्लैट या कमरे लेना प्रैक्टिकल नहीं है, क्योंकि गाँव से शायद ही कोई इन्हें किराए के पैसे भेज पाए.

यह आदिवासी छात्र बस पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहते हैं, ताकि वह गांव में रहने वाले अपने परिवारों का जीवन बेहतर कर सकें. इन हालात में, शहर में रहने और पढ़ने के लिए उनके लिए हॉस्टल की सुविधा बेहद ज़रूरी है.

राज्य के आदिवासी विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ यह मुद्दा पिछले कई महीनों से लंबित है, और विभाग आदिवासी छात्रों के रहने के लिए हॉस्टल खाली करवाने की कोशिश कर रहा है.

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