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तमिलनाडु: आदिवासी बच्चे नहीं कर पा रहे ऑनलाइन क्लास

तमिलनाडु के तिरुची ज़िले की पचमलई पहाड़ियों के ऊपर बसे एक आदिवासी गांव, टॉप सेनगाट्टुपट्टी में सरकारी ट्राइबल रेज़िडेंशियल हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को इलाक़े में नेटवर्क कवरेज की कमी की वजह से ऑनलाइन क्लास अटेंड करने में मुश्किल हो रही है.

पहाड़ी इलाकों के दूर-दराज़ के गांवों में केबल टीवी का कनेक्शन भी नहीं है. राज्य में छात्रों के लिए केबल के ज़रिए कालवी टीवी का प्रसारण किया जाता है, जिसमें शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम चलते हैं.

यह स्कूल पहाड़ियों का इकलौता हायर सेकेंडरी स्कूल है, जहां 366 छात्र पढ़ते हैं. हालांकि, इन छात्रों में से सिर्फ़ 60% के पास ही स्मार्ट फोन तक पहुंच है. लेकिन, उनके पास भी स्थिर नेटवर्क एक्सेस नहीं है और वो कभी-कभार स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप तक नहीं पहुंच पाते.

इन व्हाट्सएप ग्रुप्स पर टीचरों द्वारा पढ़ाई-लिखाई के लिए लेसन भेजे जाते हैं, जिसे बच्चे तभी एक्सेस कर पाते हैं जब उनके माता-पिता ऐसे इलाक़ों में जाएं जहां नेटवर्क कनेक्शन है.

स्कूल के शिक्षक अपनी असहायता जताते हैं, और कहते हैं कि उनके पास राज्य सरकार के वीडियो-लर्निंग प्लेटफॉर्म कालवी टीवी की सिफ़ारिश करने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

एक टीचर ने एक अखबार से बात करते हुए कहा कि पहाड़ियों पर पेरिया नगर नाम के एक गांव में कुछ छात्र हैं. यह गांव सेलम ज़िले में आता है, और यहां कोई कनेक्टिविटी नहीं है. उन बच्चों को कोई भी संदेश भेजने के लिए पड़ोसी गांवों के बच्चों की मदद लेनी पड़ती है.

आठवीं कक्षा के एक छात्र ने मीडिया को बताया, “हम अपना सारा समय खेलने में या घर के काम में अपने माता-पिता की मदद करने में लगा रहे हैं. हम स्कूल का काम करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कनेक्टिविटी की कमी के कारण ऐसा करना मुश्किल है.”

हाल-फ़िलहाल तक स्कूल में भी कोई कनेक्टिविटी नहीं थी. टीचरों द्वारा कई बार अनुरोध करने के बाद स्कूल में ही एक टावर लगाया गया.

टावर स्कूल में हाई-टेक लैब के लिए है, लेकिन कोविड के दिशा-निर्देशों के अनुसार जिन बच्चों के लिए यह लैब बनाई गई है, उन्हें ही स्कूल में आने की अनुमति नहीं है.

अब स्कूल ने अधिकारियों के निर्देश के बाद टीचरों को छात्रों को एक जगह इकट्ठा कर पढ़ाने की व्यवस्था करने की अनुमति दे दी है.

ऐसे चार केंद्रों की पहचान की गई है, जहां छात्रों की एक बड़ी संख्या है. इनमें से हर जगह दो टीचर यात्रा करेंगे, और सुबह नाश्त के बाद और दोपहर के भोजन के बाद एक-एक विषय पढ़ाएंगे. जैसा की एक टीचर ने कहा, “बच्चों की मदद करने के लिए हम कम से कम इतना तो कर सकते हैं.”

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