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आदिवासी प्रथा ने गर्भवती महिला की जान को ख़तरे में डाला

मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक गांव में सदियों पुरानी आदिवासी परंपरा ने एक गर्भवती महिला की जान को ख़तरे में डाल दिया है.

मड़ियादो पंचायत के अंतर्गत आने वाले अमझोर गांव की एक आदिवासी महिला ने बेटे की चाह में अपनी गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर, मेडिकल ट्रीटमेंट और दवाओं से परहेज किया था, जिसे स्थानीय भाषा में ‘वंदिश’ कहा जाता है.

स्थानीय आदिवासियों में एक मान्यता है कि अगर गर्भवती महिला को बेटा चाहिए तो उसे ‘वंदिश’ को अपनाना पड़ता है. इस दौरान उसे डॉक्टरों, मेडिकल ट्रीटमेंट और दवाओं से खुद को दूर रखना पड़ता है.

पंचायत के स्वास्थ्य कर्मियों ने स्थानीय ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी (BMO) को गर्भवती महिला कमलेसरानी (38) के बारे में सूचित किया था कि चिकित्सा उपचार से इनकार करने के कारण उसकी हालत बिगड़ रही है.

इसके बाद स्थानीय बीएमओ उमा शंकर पटेल ने महिला की जांच करने और उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराने के लिए एक मेडिकल टीम गांव भेजी.

स्थानीय स्वास्थ्य पर्यवेक्षक मनीषा अहिरवार ने बताया, “हम उन्हें नियमित रूप से अस्पताल में मेडिकल टेस्ट के लिए जाने के लिए मना रहे थे. लेकिन उन्होंने यह कहते हुए हमारी सलाह मानने से इनकार कर दिया कि वह ‘वंदिश’ (परंपरा) का पालन कर रही है.”

बीएमओ ने बताया, “मेडिकल टीम के काफी समझाने के बाद महिला दमोह के जिला अस्पताल में भर्ती होने के लिए राजी हुई.”

जिला अस्पताल की डॉ. गीतांजलि सीदम के मुताबिक, जब कमलेसरानी को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उनका हीमोग्लोबिन स्तर 3.6 (गर्भवती महिला के लिए सामान्य स्तर 12-16 के मुकाबले) के साथ खतरनाक रूप से कम था.

उन्होंने बताया कि अगर महिला को सही समय पर अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जाता तो यह मां और अजन्मे बच्चे दोनों के लिए घातक साबित हो सकता था.

अस्पताल में भर्ती होने के तुरंत बाद महिला को रक्त दिया गया और अगले दिन गुरुवार को उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया.

दरअसल, कमलेसरानी की पहले से चार बेटियां हैं. स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया कि इस बार वह बेटा चाहती थी और इसलिए उन्होंने अंधविश्वासी प्रथा ‘वंदिश’ अपना ली.

बीएमओ ने बताया, “क्षेत्र के आदिवासियों में ‘वंदिश’ प्रथा प्रचलित है और हम जल्द ही इस प्रथा को छोड़ने के लिए आदिवासियों को प्रेरित करने के लिए जागरूकता अभियान शुरू करने जा रहे हैं.”

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