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UP: आदिवासी मौत से खेलकर पानी भर रहे हैं. आप क्या चुनेंगे, पानी या अपनी जान?

उत्तर भारत में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है. इन हालात में उत्तर प्रदेश के हिनौती गांव की आदिवासी महिलाओं को गर्मी से मरने का डर सता रहा है.

यह महिलाएं अपने घर परिवार के लिए पीने का पानी लाने के लिए इस भीषण गर्मी में कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं.

भारत में इस साल पड़ रही चिलचिलाती गर्मी उनके 20 साल पुराने इस संघर्ष को दोगुना कर रही है. पिछले 20 सालों कितनी सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन यहां की आदिवासी महिलाओं की यह परेशानी कोई दूर नहीं कर पाया.

राज्य के उत्तर में बसा यह गांव 200 से ज्यादा आदिवासी परिवारों का घर है. और इन सब की सबसे बड़ी शिकायत पेयजल उपलब्ध कराने में सरकार की विफलता है.

एक आदिवासी महिला, मुन्नी ने मीडिया को बताया, “मैं पूरे दिन यही सोचती रहती हूं कि चार बच्चों और तीन बकरियों के लिए पीने, और खाना पकाने के लिए जरूरी पानी लाने के लिए मुझे कितनी यात्राएं करनी होंगी.”

मुन्नी ने बताया कि वो अपने परिवार और पशुओं के लिए 30 लीटर पानी सिर पर रख कर घर ले जाती है. यह उनकी रोज की जरूरत है.

लेकिन आईएमडी के अनुसार इस साल की गर्मी भीषण होने वाली है. कई इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होगा, जिससे डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में पानी भरकर लाने की कवायद किसी को दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा हो सकती है. 

गौरतलब है कि मार्च के अंत से लेकर अब तक देशभर में लू ने एक दर्जन से ज्यादा लोगों की जान ली है.

पानी का स्रोत

इस इलाके के चार गांवों की महिलाओं और बच्चों की यही कहानी और दिनचर्या है. उनके लिए पानी का इकलौता स्रोत एक खदान के बगल में बना जलाशय है. इसी खदान में इन परिवारों के आदमी दैनिक मजदूरी करते हैं. 

भारत सरकार ने अपने अधिकारियों से गर्मी से बचने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने को कहा है. इसके अलावा 2024 तक ग्रामीण इलाकों में हर व्यक्ति के लिए पीने के पानी की आपूर्ति को 50 लीटर प्रतिदिन से ज्यादा करने पर भी काम किया जा रहा है.

इस लक्ष्य को पाने के लिए, सरकार का उद्देश्य तटीय इलाकों में डेसालिनेशन प्लांट का निर्माण करना, मौजूदा संसाधनों को बेहतर करना और भूजल स्तर को बढ़ाना है. भारत सरकार ने 2019 में कहा था कि भूजल स्तर 2007 के दशक में 61 प्रतिशत गिर गया था.

सरकार चाहे जितने प्लान बना ले, लेकिन मुन्नी जैसी आदिवासी औरतों को अपनी इस कठिन परीक्षा का कोई अंत नहीं दिखता.

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