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पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष ने कहा- धर्म छोड़ने वाले आदिवासियों को नहीं मिलना चाहिए आरक्षण

लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा (Kariya Munda) ने रविवार को कहा कि इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले अनुसूचित जनजाति (Scheduled tribes) वर्ग के लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में कोई आरक्षण लाभ नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपना धर्म, संस्कृति, परंपराएं और पूजा के तरीके छोड़ दिए हैं.

मुंडा ने कहा कि उनके पूर्वजों ने संविधान सभा के समक्ष उपस्थित होकर और यह कहकर गलती की थी कि वे अपने और धर्मांतरित आदिवासियों (Converted tribals) के बीच अंतर नहीं करते हैं.

भाजपा नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) से संबद्धित जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित एक रैली को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘देश में जनजातीय लोगों का धर्म परिवर्तन करने की आड़ में बहुत बड़ी साजिश चल रही है. हमारी मांग है कि जो जनजातीय लोग इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लेते हैं, उन्हें एसटी वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है, उन्होंने अपनी जीवनशैली, संस्कृति, विवाह परंपराएं और भगवान की पूजा करने के तरीके बदल लिए हैं.

मुंडा ने कहा, ‘जिस तरह से अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के धर्मांतरित लोगों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलता है. उसी तरह का कानून एसटी वर्ग के लोगों पर भी लागू होना चाहिए.’

झारखंड में खूंटी लोकसभा सीट का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके आदिवासी नेता ने दावा किया कि देश में आदिवासी आबादी लगभग 8.5 करोड़ है, जिनमें से 80 लाख ईसाई और 12 लाख मुस्लिम हैं.

उन्होंने कहा कि अन्य धर्म अपनाने वाले आदिवासियों की वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि उनमें से कई अपने धर्म परिवर्तन के बारे में खुले तौर पर नहीं जानते हैं.

मुंडा ने कहा, “हालांकि, जब आदिवासियों के लिए लाभ का दावा करने की बात आती है तो ये धर्मांतरित लोग सबसे आगे होते हैं.”

उन्होंने इस दावे को खारिज करने की मांग की कि उनके संगठन की मांग आरएसएस से प्रभावित है.

उन्होंने कहा, “हम सदैव हिंदू और सनातनी रहे हैं. हम प्रकृति की पूजा करते हैं. वेदों के समय से ही यह हमारी प्रथा रही है… हम अकेले हैं जो सनातन या वेदों के जीवन जीने के तरीके से जुड़े हुए हैं. यहां तक कि हिंदुओं ने भी अपने जीवन जीने का तरीका बदल लिया है.”

दरअसल, आरएसएस समर्थित आदिवासी संगठन, जनजाति सुरक्षा मंच ने रविवार को मुंबई में एक रैली आयोजित की थी. जिसमें अन्य धर्मों में परिवर्तित हुए आदिवासियों को सूची से हटाने की मांग की गई.

मंच और सहयोगी संगठनों के नेताओं ने कहा कि जो लोग आदिवासियों की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन नहीं करते हैं, उन्हें उनके नाम पर आरक्षण पाने का कोई अधिकार नहीं है.

साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे आने वाले दिनों में राज्य के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की रैलियां आयोजित करेंगे, जिससे आरक्षण को लेकर जारी संकट और गहराने की संभावना है.

मंच के सह-संयोजक संतोष जनाते ने प्रतिभागियों से कहा कि यह जागने और हमारे समुदाय के हितों की रक्षा करने का समय है. उन्होंने कहा कि असम, नागालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में 111 नौकरशाहों में से 96 ने अन्य धर्म अपना लिए हैं. देश के लगभग हर राज्य में यही स्थिति है.

पालघर, ठाणे, सिंधुदुर्ग और रायगढ़ सहित कोंकण के विभिन्न जिलों के आदिवासियों ने रविवार की रैली के स्थल शिवाजी पार्क से जंबोरी मैदान तक पैदल मार्च में हिस्सा लिया.

वहीं रैली में उपस्थित नेताओं में लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा, आदिवासी कार्यकर्ता थमाताई पवार, आशीष शेलार, मंगा प्रभात लोढ़ा और अन्य भाजपा नेता और जनजाति सुरक्षा मंच के पदाधिकारी शामिल थे.

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