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कोरापुट के कोटिया गांवों के आदिवासी बनना चाहते हैं आंध्र प्रदेश का हिस्सा, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमा पर स्थित कोटिया ग्राम पंचायत के 21 गांवों के लोग अपनी पहचान को लेकर असमंजस में हैं.

हाल ही में इन गांवों, जिनमें क़रीब 4000 आदिवासी रहते हैं, के लोगों ने एक प्रस्ताव पारित कर आंध्र प्रदेश में शामिल होने में अपनी रुचि व्यक्त की है. दरअसल, 1960 के दशक की शुरुआत से ही ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच इस इलाक़े पर नियंत्रण को लेकर क़ानूनी लड़ाई चल रही है.

कोटिया ग्राम पंचायत में 28 गांव हैं, और 1936 में इसके गठन के दौरान ओडिशा ने गलती से 21 गांवों का सर्वेक्षण नहीं किया. 1955 में आंध्र प्रदेश के निर्माण के समय, उन 21 गांवों का आंध्र प्रदेश ने भी सर्वेक्षण नहीं किया था, और इस वजह से यह सीमावर्ती गांव विवाद में फंस गए.

सोमवार को गांव के कुछ लोग विजयनगरम कलेक्टरेट पहुंचे, और कलेक्टर से आंध्र प्रदेश का नागरिक बनने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने के लिए एक ज्ञापन सौंपा. इस मौक़े पर कलेक्टर ए सूर्यकुमारी समेत दूसरे अधिकारी भी मौजूद थे. ज्ञापन सौंपने के लिए गंजई भद्रा, कोनाधारा, पट्टू चेन्नुरु और पगुलु चेन्नुरु के आदिवासी नेता विजयनगरम पहुंचे थे.

आदिवासियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा

कोनाधारा गांव के टी सिंगारम्मा ने कहा कि ओडिशा के अधिकारी घर के पट्टे, कृषि भूमि और कुछ दूसरी कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश करके उन्हें लुभा रहे हैं, और उनपर ओडिशा के साथ रहने का दबाव बना रहे हैं. “लेकिन हम सिर्फ़ एपी का हिस्सा बनना चाहते हैं. हमें विश्वास है कि एपी हमारी रक्षा करेगा,” सिंगारम्मा ने कहा.

एक दूसरे आदिवासी के मुताबिक़ ओडिशा पुलिस और दूसरे अधिकारी गांववालों को धमकी दे रहे हैं कि वे उनके ज़मीन के पट्टे रद्द कर देंगे, और पुलिस मामले भी दर्ज कर देंगे.

कलेक्टर ए सूर्यकुमारी ने कहा कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है, जो पिछले कई दशकों से अनसुलझा है. उन्होंने कहा, “हम निश्चित रूप से इस मुद्दे को सरकार के संज्ञान में लाएंगे और इन गांवों की हर संभव मदद करेंगे.” बाद में कलेक्टर ने आदिवासियों को बेहतर सेवाएं देने के लिए ज़िला अधिकारियों की भी सराहना की और उन्हें इसी भावना को जारी रखने और कोटिया गांवों के हितों की रक्षा करने का निर्देश दिया.

कोटिया गावों के पहाड़ी इलाक़ों में 4,000 से ज़्यादा आदिवासी रहते हैं. यहां पोरजा, डोंब, जटाबा डोरा और कुछ दूसरे आदिवासी समुदाय 21 गाँवों में रहते हैं. जब से अंतर-राज्यीय विवाद शुरू हुआ है, तब से इन गांवों के लोग अपनी पहचान के संकट का सामना कर रहे हैं.

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