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छत्तीसगढ़: बुनियादी सुविधाओं के लिए आदिवासियों ने सरकार के खिलाफ़ खोला मोर्चा, छोटेबेठिया में विरोध-प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के बस्तर में सरकारी उदासीनता के ख़िलाफ़ आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है. कांकेर ज़िले के छोटेबेठिया में शनिवार को सैकड़ों आदिवासियों ने मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया.

आदिवासी बहुल इलाकों में विकास न होने से आदिवासी सरकार से काफ़ी नाराज़ हैं. अंतागढ़ से चुने गए कांग्रेसी विधायक अनूप नाग और बीजेपी सांसद मोहन मंडावी ने भी इन आदिवासियों की बेहतरी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. इसी बात से नाराज़ बड़ी संख्या में आदिवासियों ने छोटेबेठिया में धरना प्रदर्शन किया, और अपनी मांगों को दोहराया.

एक दिन के इस धरना प्रदर्शन में अबूझमाड़ के आदिवासियों ने भी हिस्सा लिया. उनका आरोप है कि आजादी के बाद से आज तक सरकार ने उन्हें राजस्व पट्टा नहीं दिया है. नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लॉक के अनेक गांवों में पेयजल, स्वास्थ्य, स्कूल, बिजली, आंगनबाड़ी केंद्रों की कमी है.

उधर, झरिया का दूषित पानी पीकर आदिवासी बीमार हो रहे हैं. अगर आदिवासी अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए किसी तरह स्कूल भेज भी दें, तो जाति प्रमाण पत्र मिलने में मुश्किल होती है, और अधिकांश बच्चों को पढाई बंद करनी पड़ती है.

अबूझमाड़ के जारावर गांव के सनकेर नुरूटी ने हमें बताया कि उनके गांव में सोलर लाइट सालभर से ख़राब है, और गांव के एकमात्र हैंडपंप से कभी पानी निकला ही नहीं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर गांवों की हालत ऐसी ही है. केंद्र सरकार का स्वच्छ भारत मिशन भी कभी उनके गांव नहीं पहुंचा है.

आदिवासी बहुल इलाकों में विकास न होने से यह लोग सरकार से काफ़ी नाराज़ हैं

आदिवासियों की मांगें

आदिवासियों ने सिलगेर में प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी करने के लिए ज़िम्मेदार पुलिस अफ़सरों पर हत्या का मुक़दमा दर्ज करने की मांग भी की.

इसके अलावा बस्तर विश्वविद्यालय में स्थानीय बेरोज़गार आदिवासियों की अलग-अलग पदों पर नियुक्ति, ऑनलाइन पढाई बंद कर शिक्षकों को गांवों में रहकर पढ़ाने के आदेश, ग्रामसभा और PESA कानून की अनुमति के बिना स्थापित थाना कैंपों, परियोजनाओं और खदानों को रदद् करना और केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की भी मांग की गई है.

गांवों में आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था की मांग भी है. गावंवालों का कहना है कि प्राइमरी, मिडिल, हाई स्कूल तथा हायर सेकंडरी स्कूल खोला जाना चाहिए.

अंदरूनी इलाकों में इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र, पीने के लिए साफ़ पानी की व्यवस्था, आंगनबाड़ी केंद्र और बरसात में कालापानी जैसी सज़ा भुगत रहे आदिवासियों के लिए सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए.

सनकेर नुरूटी ने यह भी बताया कि इलाक़े में अच्छी सड़क और नदियों पर पुल न होने के चलते मॉनसून आते ही इन लोगों का जीवन बेहद मुश्किल हो जाता है. बारिश के मौसम में अगर कोई आदिवासी बीमार हो जाता है तो उसे इलाज के लिए ले जाना मुश्किल हो जाता है. इससे कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.

आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था की मांग भी है

कई बार ज्ञापन दिया, लेकिन नहीं हुई सुनवाई

यह पहली बार नहीं है कि बुनियादी सुनाधाओं के लिए इन आदिवासियों ने आवाज़ उठाई हो. इससे पहले भी इन लोगों ने प्रशासन को ज्ञापन देकर अपनी मांगों को उठाया है, लेकिन आदिवासियों की आवाज़ अनसुनी ही रही है.

हिदुर गांव के मोडडाराम पद्दा ने हमें बताया कि उनके गांव में बिजली कनेक्शन नहीं है. और क्रेडा ने जो सोलर लाइट लगाई थीं, वह भी खराब हो चुकी हैं. दिया जलाने के लिए जो मिट्टी का तेल मिलता है, वह अंधेरे को दूर करने के लिए काफ़ी नहीं है. पिछले एक साल से उनका परिवार अंधेरे में गुज़ारा करने को मजबूर है.

सोलर लाइट के बारे में जानकारी क्रेडा के अफ़सरों से लेकर कलेक्टर तक को दी गई है, लेकिन अब तक कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया है.

कंदाड़ी गांव की महिला सरपंच मैनी कचलाम ने छोटेबेठिया में कॉलेज खोलने की मांग की है. उनका कहना है कि आदिवासी बच्चों की पढ़ाई अकसर अधूरी रह जाती है, क्योंकि कॉलेज यहां से दूर है और वहां जाकर पढ़ना मुश्किल हो जाता है. मैनी कचलाम ने हर ग्राम पंचायत में एक उपस्वास्थ्य केंद्र खोलने की ज़रूरत भी बताई.

गणेश नायक ने कहा कि आदिवासियों को सरकार ने उनके हाल पर छोड़ दिया है. सरकार चाहे कुछ भी दावा करे, लेकिन आज़ादी के सात दशक बाद भी बुनियादी सुविधाओं के लिए आदिवासियों को सड़क पर उतरना पड़ रहा है, तो आप खुद ही समझ सकते हैं कि सच क्या है.

आदिवासी छात्र युवा संगठन के राजेश नुरूटी ने बताया कि ज्यादातर गांवों में मिडिल स्कूल न होने की वजह से आदिवासी बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह जाती है. ख़ासकर लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है क्योंकि कई गांवों में स्कूल तक नहीं है. इलाके में शिक्षकों की कमी भी एक बड़ी समस्या है.

इस प्रदर्शन में लक्ष्मण मंडावी ,गज्जू पद्दा, सरपंच दलसू अंचला, जितेंद्र बघेल, संकेर पद्दा, अनिल नूरूटी, सुरेश कचलाम, कंडे राम, राजेश्वरी उइके, संगीता दुग्गा, मुकेश गावड़े और जंगलू कड़ियाम समेत बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग मौजूद थे.

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