Mainbhibharat

केरल: कोरोना को रोकने के लिए मरयूर आदिवासी बस्ती ने लागू किया खुद का लॉकडाउन

केरल भले ही एक और लॉकडाउन की तैयारी कर रहा हो, लेकिन राज्य के इडुक्की ज़िले के मरयूर में आदिवासी समुदायों ने कोविड से लड़ाई में एक उदाहरण पेश किया है.

यहां के आदिवासी समूहों ने दो हफ़्ते पहले ही खुद का लॉकडाउन लागू कर दिया था, और इसका नतीजा यह है कि इस आदिवासी समुदाय से कोई भी अब तक कोविड-19 से संक्रमित नहीं है.

मरयूर के आदिवासी समुदायों के प्रमुखों ने अप्रैल में एक बैठक कर महीने की 26 तारीख़ से आदिवासी बस्तियों में लॉकडाउन लागू करने का फैसला किया.

मरयूर रेंज अधिकारी एम के विनोद कुमार ने मीडिया को बताया  कि वन विभाग ने कोविड-19 की दूसरी लहर के मद्देनजर आदिवासी कॉलोनियों में बाहरी लोगों के प्रवेश पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था.

आदिवासियों ने भी अपनी बस्तियों में प्रवेश की अनुमति सिर्फ़ वन अधिकारियों और आरटी-पीसीआर (RT-PCR) नेगेटिव रिपोर्ट वाले लोगों या उन लोगों को दी है जिन्हें वैक्सीन की दो डोज़ लग चुकी हैं.  

बाहरी दुनिय से संपर्क को कम से कम करने के लिए समुदाय एक सदस्य बस्तियों से बाहर निकलता है, और सभी परिवारों के लिए सामान खरीदता है.

लॉकडाउन के दौरान वन विभाग इलाक़े के आदिवासियों को ज़रूरत पड़ने पर दवाएं देगा. लोग अपनी ज़रूरत की दवाओं की लिस्ट उन्हें दे सकते हैं, और विभाग उन दवाइयों को खरीद कर उन्हें निशुल्क उपलब्ध कराएगा.

मरयूर के जनजातीय अधिकारी वी सुरेश कुमार के अनुसार, मरयूर, चिन्नार और वट्टवड़ा के तहत 2,900 परिवारों के 9,000 आदिवासी सख्ती से लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं.

आदिवासियों ने पिछले साल कोविड-19 की पहली लहर के दौरान भी लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया था, और अपने समुदाय को वायरस से बचाकर रखा था.

आदिवासियों के बीच मास्क के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए, 23 आदिवासी महिलाओं के एक समूह – “गोत्र जीविका” ने आदिवासियों के लिए मास्क सिलने का काम शुरु किया है.

इन मास्क के लिए कपड़ा जनजातीय विभाग दे रहा है. हर मास्क के लिए महिलाओं को 5 रुपए दिए जाएंगे, और आदिवासियों को मुफ्त में यह मास्क बांटे जाएंगे.

एडमलकुडी की पहले आदिवासी पंचायत ने भी वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया था. देवीकुलम के उपज़िलाधिकारी एस प्रेमकृष्णन का कहना है कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आदिवासियों का यह फ़ैसला मददगार होगा.

अधिकांश आदिवासी बस्तियां दूरदराज़ के इलाक़ों में हैं, और इनमें अगर कोई संक्रमित हो जाता है तो इलाज करने में मुश्किल होगी.

Exit mobile version