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मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाक़ों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं, ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते हैं रोज़

मध्य प्रदेश में आदिवासी इलाक़ों का क्या हाल है, यह इस बात से पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए आदिवासियों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. गांव तक सड़क संपर्क न होने के चलते गुरुवार को एक गर्भवती आदिवासी महिला, चैना बाई, को एक अस्थायी स्लिंग में 5 किमी की दूरी पर खड़ी एम्बुलेंस तक ले जाया गया.

इसे चमत्कार ही कहेंगे कि चैना बाई ने पनसेमाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. पनसेमाल में पिछले चार महीनों में यह दूसरी बार था जब एक गर्भवती महिला को चादर और लकड़ी के खंभों से बने स्लिंग में अस्पताल ले जाया गया.

20 साल की चैना बाई मोरे, पनसेमाल से लगभग 20 किमी दूर एक दुर्गम आदिवासी गांव कंजापानी में रहती है. जब उसे गुरुवार को प्रसव पीड़ा उठी तो इलाक़े की आशा कार्यकर्ता ने कहा कि उसे तत्काल अस्पताल पहुंचाना ज़रूरी है.

आशा कार्यकर्ता ने एम्बुलेंस तो बुलाई, लेकिन पक्की सड़क के अभाव में एम्बुलेंस का गांव तक पहुंचना नामुमकिन था. इसलिए चैना बाई को स्लिंग में डालकर लालवानिया तक उठाकर ले जाया गया. एम्बुलेंस वहां उनका इंतज़ार कर रही थी.

दरअसल, पाटी ब्लॉक की शिओनी पंचायत में भुरवानी से बोकराटा तक सड़क नहीं होने से गर्भवती महिलाओं और बीमारों को इसी तरह से एम्बुलेंस तक ले जाना पड़ता है. इलाक़े के लोग सालों से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन बेपरवाह है.

सिर्फ़ बीमारों को ही नहीं, किसानों को भी अपनी उपज बाज़ार तक ले जाने के लिए काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

बड़वानी के कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा का कहना है कि उन्होंने 375 ऐसी जहगों की पहचान की है जहां सड़कों की ज़रूरत है. यह सभी इलाक़े वन विभाग के तहत आते हैं. उनका कहना है कि वन विभाग से एनओसी मिलने के बाद सड़कों का निर्माण मनरेगा के तहत किया जाएगा.

राज्य के दूसरे छोर पर छतरपुर ज़िले में 18 सितंबर को एक गर्भवती महिला की प्रसव के समय मौत हो गई क्योंकि उसके गांव तक समय पर कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाई, और उसे अस्पताल तक ले जाने वाला ट्रैक्टर भी कीचड़ में फंस गया. ग्रामीणों के पास बेबसी से उसे मरते देखने के अलावा और कोई चारा नहीं था.

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