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ओडिशा: आदिवासियों को मिलेगी सस्टेनेबल प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग

ओडिशा सरकार ने सस्टेनेबल खेती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. सरकार राज्य के पांच जिलों के आदिवासी बहुल इलाकों में एक “जलवायु-रेजिलिएंट” प्राकृतिक खेती कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है.

अधिकारियों के मुताबिक प्राकृतिक खेती परियोजना को लागू करने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित रायतु साधिका संस्था (RySS) का सहयोग लिया जाएगा.

राज्य के मुख्य सचिव सुरेश चंद्र महापात्र ने कहा, “प्राकृतिक खेती को लोगों के बीच स्वीकृति मिलेगी, खासतौर से ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों में, क्योंकि यह उनके पारंपरिक पैटर्न के अनुकूल है.”

इस प्रक्रिया के फायदों में उत्पादन की कम लागत और सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का पैदावार होगा.प्राकृतिक खेती कीटनाशकों या सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के बिना की जाने वाली एक मजबूत खेती प्रणाली है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिस्टम में फसलों, पेड़ों और पशुओं को एकीकृत करता है.

3.15 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को कवर करने वाली इस परियोजना को 2022-23 के वित्तीय वर्ष से पांच वर्षों में लगभग 312 करोड़ रुपये के निवेश के साथ शुरू किया जाएगा.

सुंदरगढ़, क्योंझर, मयूरभंज, रायगडा और कोरापुट जिलों में महिला स्वयं सहायता समूहों (WSHG) के माध्यम से शुरू की जाने वाली इस योजना के लिए क्लस्टर बनाए जाएंगे, और फिर यह खेती अपनाई जाएगी.

WSHG को फसल विविधता, जैव-इनपुट की शुरुआती तैयारी और मानसून से पहले बुवाई के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी. सफाई, ग्रेडिंग, सेग्रीगेशन और स्टोरेज के लिए कॉमन फैसिलिटी केंद्रों की स्थापना में उनकी सहायता भी की जाएगी.

विकास आयुक्त प्रदीप जेना ने कहा कि प्राकृतिक खेती सस्टेनेबिलिटी की दिशा में एक बड़ा बदलाव लाएगा.

जैविक खाद्य पदार्थों की लोकप्रियता की आजकल बाजार में काफी मांग है. ऐसे में प्राकृतिक खेती से WSHG की आय में बढ़ोतरी होगी.

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