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नागरहोल टाइगर रिज़र्व के आदिवासियों के पुनर्वास का काम 23 साल बाद भी अधूरा

कर्नाटक सरकार पर नागरहोल टाइगर रिज़र्व के अंदर से आदिवासियों के पुनर्वास की प्रक्रिया में तेजी लाने का दबाव बढ़ गया है.

अतिरिक्त वन महानिदेशक (Additional Director General of Forests), प्रोजेक्ट टाइगर और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के सदस्य सचिव ने सरकार को पुनर्वास का काम जल्दी ही पूरा करने का निर्देश दिया है, जो पिछला 23 साल से अटका पड़ा है.

कर्नाटक स्टेट वाइल्डलाइफ़ बोर्ड ने हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण और श्रम मंत्री भूपिंदर यादव को एक ख़त लिखा था, जिसमें इस बात पर ज़ोर था कि नागरहोल टाइगर रिज़र्व में रहने वाले आदिवासियों का पुनर्वास जो 1998 में शुरू हुआ था, वो अब 23 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ है.

अभी भी रिज़र्व में 350-400 परिवार ऐसे हैं जो पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे हैं. कोर फ़ॉरेस्ट एरिया में मानव निवास के इकोलॉजिकल प्रभाव और मुख्यधारा में शामिल होने की इन परिवारों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए पुनर्वास का काम जल्द पूरा होना चाहिए.

पर्यावरणविद् कहते हैं कि एनटीसीए पैकेज और मानव-जानवर संघर्ष (Man-Animal conflict) आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालने के पीछे की मुख्य वजहें हैं. नागरहोल नैशनल पार्क के अंदर तीन प्रमुख आदिवासी समूह रहते हैं – जेनुकुरुबा और बेट्टाकुरुबा, येरवा, सोलिगा.

अतिरिक्त डीजीएफ एसपी यादव ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “राज्य को State Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA) से वित्तीय सहायता मांगने का निर्देश दिया गया है. इसके अलावा राज्य आदिवासी विभाग आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्वैच्छिक गांव स्थानांतरण के लिए फ़ंड की दूसरी संभावनाएं भी तलाश रहा है.”

नागरहोल नैशनल पार्क के अंदर तीन प्रमुख आदिवासी समूह रहते हैं – जेनुकुरुबा और बेट्टाकुरुबा, येरवा, सोलिगा

उधर, वन्यजीव बोर्ड के एक सदस्य का कहना है कि केंद्र सरकार ने संरक्षित इलाक़ों से लोगों के पुनर्वास के लिए CAMPA फंड से लगभग 1,300 करोड़ रुपये कर्नाटक सरकार को दे दिए हैं, लेकिन इस फंड का अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है.

दावा है कि कर्नाटक के अलावा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने भी उन्हें दिए गए CAMPA फंड का इस्तेमाल नहीं किया है. यह इस बात के बावजूद है कि स्वैच्छिक पुनर्वास प्रक्रिया केंद्र सरकार की आधिकारिक नीति का हिस्सा है, जिसका मक़सद टाइगर रिज़र्व और संरक्षित जंगलों में फंसे लोगों को सामाजिक न्याय देना है.

नागरहोल टाइगर रिज़र्व से पुनर्वास की ज़रूरत आदिवासी संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, राज्य के वन विभाग और वन्यजीव संगठनों के बीच विवाद का एक बड़ा मुद्दा रहा है.

जंगल के अंदर गतिविधियों पर कई तरह के प्रतिबंधों, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 के लागू होने के साथ आए, ने आदिवासी समुदायों के आजीविका के स्रोतों को सीमित कर दिया है.

1991 में स्वैच्छिक स्थानांतरण की दिशा में पहला कदम तब उठाया गया जब आदिवासियों के एक समूह ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा से मुलाकात की और पार्क के अंदर खेती के लिए ज़मीन, सड़कों, अस्पतालों और स्कूलों जैसी सेवाओं की मांग की.

एक दावा यह भी है कि गैर सरकारी संगठन, कार्यकर्ता और आदिवासियों का एक वर्ग आदिवासियों के पुनर्वास का विरोध कर रहा है.

योजना के तहत किसी को भी जबरदस्ती नहीं निकाला जा सकता. बल्कि सिर्फ़ उनका पुनर्वास होगा, जो खुद जंगल से बाहर जाना चाहते हैं. 2006 तक 250 से ज़्यादा परिवार जंगल से बाहर चले गए थे, लेकिन मुआवज़े के पैकेज को लेकर आदिवासियों और सरकार के बीच आज भी असहमति है.

हालांकि, उम्मीद तो यही है कि जल्द ही पुनर्वास का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन वन विभाग के पास इस पुनर्वास कार्य को पूरा करने के लिए धन नहीं है.

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