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आधी आदिवासी आबादी नाम तक नहीं लिख सकती, संसद में चर्चा तक नहीं होती – मनोज झा

भारत में आज भी आदिवासी आबादी में 40 प्रतिशत से अधिक आबादी निरक्षर है. यानि आदिवासी आबादी का लगभग आधा हिस्सा ऐसा है जो अपना नाम तक लिखना नहीं जानता है.

इसके अलावा 12 साल से 18 साल के बीच की उम्र के आदिवासी युवक युवतियों में से 6.8 प्रतिशत भी 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं. ये आँकड़े बजट चर्चा के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने राज्य सभा में रखे हैं.

आदिवासी मंत्रालय की अनुदान माँगो पर चर्चा के दौरान बोलते हुए मनोज झा ने कहा कि देश के आदिवासियों पर संसद में शायद ही कभी चर्चा भी होती है. उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाक़ों में दख़लंदाज़ी की बजाए उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था.

लेकिन इस नीति के उल्टा काम हुआ है. आदिवासी इलाक़ों में विकास के नाम पर दख़लअंदाज़ी ज़्यादा हुई है. उन्होंने संसद में आदिवासी मसलों पर बोलते हुए कहा कि आदिवासी इलाक़ों में कुपोषण, ज़बरदस्ती शहरीकरण की कोशिश और बीमारी ये तिहरी मार लोग झेल रहे हैं.

राज्य सभा में बोलते मनोज झा

संसद में आदिवासी मंत्रालय की अनुपूरक माँगो पर बोलते हुए उन्होंने एकलव्य मॉडल स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया. उनका कहना था कि इन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता चिंता का विषय होना चाहिए.

लेकिन अफ़सोस कि बात है कि एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल  स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं किया जा रहा है. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि बिहार और जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में सरकार ने आदिवासियों के लिए आवासीय स्कूल के लिए कोई पैसा आवंटित नहीं किया है. 

राज्य सभा में चर्चा के दौरान उन्होंने आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा का ध्यान कई महत्वपूर्ण विषयों की तरफ़ खींचने का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा तक पहुँचना वंचित तबकों के लिए बेहद मुश्किल काम है.

ख़ासतौर से आदिवासी आबादी का उच्च शिक्षा में प्रतिनिधित्व ना के बराबर मिलता है. उन्होंने कहा कि सरकार को आदिवासी छात्रों के उच्च शिक्षा तक पहुँचने तक पहुँचने में जो बाधाएँ हैं उन्हें दूर करना चाहिए. 

मनोज झा ने कहा कि आदिवासी इलाक़ों में नक्सलवाद को सिर्फ़ लॉ एंड ऑर्डर की समस्या के तौर पर देखना भूल होगी. क्योंकि यह सिर्फ़ क़ानून व्यवस्था का मसला नहीं है बल्कि यह सामाजिक मामला भी है.

उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार से सवाल पूछा कि 2018 के बाद आदिवासी मसलों से जुड़ी कमीशन की रिपोर्ट पेश क्यों नहीं की गई. सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यह बताता है कि सरकार पारदर्शिता में कितना यक़ीन रखती है. 

केन्द्र सरकार के 2022-23 के बजट में कुल 8451 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है. पिछले साल की तुलना में यह क़रीब 12 प्रतिशत ज़्यादा है. साल 2021-22  के लिए आदिवासी मंत्रालय को 7524 करोड़ रूपये आवंटित किए गए थे. हालाँकि बाद में इस काट कर कुल 6181 करोड़ रूपये कर दिया गया था. 

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