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आदिवासी राष्ट्रपति ने जगाई सरना कोड की उम्मीद

झारखंड के आदिवासियों के बीच आशाएं और आकांक्षाएं बहुत अधिक बढ़ गई है क्योंकि वे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर देख रहे हैं, जिन्होंने आज भारत के पहले आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है. ताकि “सदियों की उपेक्षा” के बाद उनके ‘सेन्गेल’ (सशक्तिकरण) का मार्ग प्रशस्त किया जा सके.

वे इस बात को लेकर भी आशान्वित हैं कि राज्य की पूर्व राज्यपाल मुर्मू आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए कदम उठाएंगी कि केंद्र उनके धर्म को ‘सरना’ के रूप में मान्यता दे और अगली जनगणना में इस श्रेणी के तहत गणना सुनिश्चित करे.

पांच राज्यों (झारखंड, ओडिशा, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल) के 250 जिलों में ‘आदिवासी सेंगेल अभियान’ (आदिवासी सशक्तिकरण अभियान) की अगुवाई कर रहे सलखान मुर्मू ने पीटीआई से कहा, “जैसा कि बंगाली ‘सोनार बांग्ला’ को अपनी पहचान और केंद्र मानते हैं, आदिवासी झारखंड को अपना केंद्र मानते हैं.”

उन्होंने कहा, “वे चाहते हैं कि उनसे जुड़ी संस्कृति और परंपराओं को यहां संरक्षित किया जाए. हमें विश्वास है कि द्रौपदी मुर्मू ‘सरना कोड’ की स्थापना की दिशा में कदम उठाएगी.”

सालखन मुर्मू ने याद किया कि कैसे झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल के रुप में द्रौपदी मुर्मू ने कई मौकों पर कड़ा रुख अपनाया था, जब ‘आदिवासी मुद्दों से समझौता किया गया था’. पिछली बीजेपी सरकार के दौरान एक विधेयक लौटा दिया था, जिसका उद्देश्य भूमि कानूनों में संशोधन करना था, साथ ही जब झामुमो के नेतृत्व वाली हेमंत सोरेन सरकार ने जनजातीय सलाहकार परिषद में बदलाव का प्रस्ताव रखा था.

सलखान मुर्मू ने कहा, “हम आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. ‘सरना कोड’ को न मानने का मतलब होगा आदिवासियों को दूसरे धर्म अपनाने के लिए मजबूर करना. हम समय मांगेंगे और राष्ट्रपति भवन में उनसे मुलाकात करेंगे.”

झारखंड की केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि आदिवासी उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आदिवासियों के लिए हमेशा खुले रहेंगे.

वहीं आदिवासी सेंगेल अभियान की राष्ट्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू ने कहा, “आदिवासियों और पूरे देश की बेहतरी का समय आ गया है.”

आदिवासी नेताओं ने सर्वसम्मति से कहा कि शीर्ष पद के लिए द्रौपदी मुर्मू का चुनाव आदिवासी आइकन बिरसा मुंडा, सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू जैसे अन्य लोगों के बलिदान के लिए एक वास्तविक श्रद्धांजलि है, जिन्होंने 1850 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था.

इससे पहले, झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें जनगणना में ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने की मांग की गई थी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले महीने एक ट्वीट में कहा था, “हमने विधानसभा में सरना आदिवासी धर्म संहिता पारित की है और इसे केंद्र को भेज दिया है.”

(Image Credit: @narendramodi)

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