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ओडिशा पंचायत चुनाव के लिए कोटा में कटौती के खिलाफ आदिवासियों का प्रदर्शन

आदिवासियों के संगठन ओडिशा आदिवासी कल्याण संघ ने पंचायत चुनाव के लिए अपने कोटे में कटौती के खिलाफ सोमवार को बोलनगीर जिला कलेक्टर कार्यालय के सामने एक रैली की.

संघ के एक नेता निरंजन बीसी ने कहा कि राज्य के 30 जिलों में से 23 में आदिवासियों को राजनीतिक रूप से किनारे कर दिया जाएगा क्योंकि 195 ब्लॉकों में उनके लिए एक भी सरपंच पद आरक्षित नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि इसी तरह उनके लिए कोई पंचायत समिति अध्यक्ष पद भी आरक्षित नहीं किया गया है.

बिसी ने कहा, “2017 के पंचायत चुनावों में 23 जिलों में सरपंच के कम से कम 2,300 पद आदिवासियों के लिए आरक्षित थे, जबकि 70 पद पंचायत समिति अध्यक्षों के पदों के लिए हमारे लिए चिह्नित किए गए थे. लेकिन इस बार हम ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) उम्मीदवारों को खुश करने के लिए पूरी तरह से भूल गए हैं, जो हमसे अधिक संख्या में हैं.”

उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 243D का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक पंचायत में जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लिए सीटें आरक्षित करनी होंगी.

निरंजन बीसी ने कहा कि बोलांगीर जिले में, जहां आदिवासियों की आबादी 21 फीसदी है, वहां 317 ग्राम पंचायतों में सरपंच का एक भी पद आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं है. उन्होंने कहा कि जबकि 2017 में उनके लिए 72 पद आरक्षित थे. पटनागढ़ प्रखंड में, जहां आदिवासी आबादी का 32 फीसदी है, उनके लिए सरपंच का कोई पद आरक्षित नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा, “हम सामाजिक रूप से बीजू जनता दल (BJD) का बहिष्कार करेंगे और पार्टी के किसी भी नेता को गांवों में प्रवेश नहीं करने देंगे, अगर हमारी आवाज को नजरअंदाज किया जाता है.”

आदिवासियों के लिए 2017 के पंचायत चुनाव में कोटा को बनाए रखने के लिए सोनपुर, संबलपुर, बरगढ़, झारसुगुडा, अंगुल, नुआपाड़ा और बालासोर जिलों में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए थे.

पंचायती राज विभाग के निदेशक ज्ञान दास ने कहा, “संशोधित ओडिशा ग्राम पंचायत अधिनियम के मुताबिक, आदिवासियों के लिए सरपंच का कोई पद आरक्षित नहीं होना चाहिए. इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि आदिवासियों को 22.8 फीसदी आरक्षण मिले, हमने बाकी जिलों में वार्ड सदस्यों के पद आरक्षित किए हैं.”

कालाहांडी आदिवासी संघ के प्रमुख प्रकाश मांझी ने सरकार पर आदिवासियों को उनके हक से वंचित करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, “जब नवीन पटनायक (मुख्यमंत्री) 2000 में सत्ता में आए, तो उन्होंने कई योजनाएं शुरू करके आदिवासियों के लिए हर संभव कोशिश की. लेकिन 2022 के पंचायत चुनावों में सरकार ओबीसी की राजनीति करना चाहती है और इस तरह अब आदिवासियों की जरूरत नहीं रह गई है. पंचायती राज व्यवस्था में आदिवासियों को कमजोर करने से आदिवासियों को जो कुछ भी हासिल हुआ है, वह शून्य हो जाएगा.”

(Image Credit: Hindustan Times)

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