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छत्तीसगढ़: बोधघाट परियोजना के ख़िलाफ़ आदिवासियों की बस्तर में विशाल रैली

छत्तीसगढ़ में बोधघाट पनबिजली परियोजना के विरोध में बस्तर के आदिवासी समुदायों ने मंगलवार को एक रैली की. इन सभी आदिवासियों ने पारंपरिक पोशाकें पहनी, अपने पारंपरिक हथियार, तीर और धनुष लेकर इकट्ठा हुए और परियोजना के खिलाफ़ नारे लगाए.

आठ किलोमीटर लंबी इस रैली में क़रीब तीन हज़ार आदिवासी शामिल हुए. कुछ बाइक पर सवार थे, तो कुछ पैदल चले. इन आदिवासियों ने जल, जंगल, ज़मीन से जुड़े अपने हक़ों, और पर्यावरण की रक्षा के लिए आवाज़ उठाई.

बस्तर के हितलकुडुम गांव में 40 साल से बंद पड़ी बोधघाट पनबिजली परियोजना का बांध बनना है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में इस परियोजना को फिर से शुरु करने का केंद्र को प्रस्ताव सौंपा था.

हितलकुडुम गांव इंद्रावती नदी के तट पर बसा है, तो इस परियोजना का असर भी सबसे ज़्यादा यहीं दिखेगा. यह विवादास्पद परियोजना पिछले 40 वर्षों से चर्चा और विवादों में घिरी रही है. इसके पूरा होने से क़रीब 56 गांव जलमग्न हो जाएंगे, और हज़ारों आदिवासी बेघर.

यही वजह है कि आदिवासी इस परियाजना का पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं. इस साल फ़रवरी में आसपास के चार ज़िलों से क़रीब आठ हज़ार लोगों ने इस बांध परियोजना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी.

भारत के संविधान में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड, मिज़ोरम, आंध्र प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों आदिवासियों को विशेष अधिकार और प्रावधान दिए गए हैं. इनमें जंगल की ज़मीन पर उनके अधिकार भी शामिल हैं.

ग्राम सभा, पेसा अधिनियम, पांचवीं अनुसूची जैसे कानून छत्तीसगढ़ और बाकि राज्यों के आदिवासी समुदायों पर लागू होते हैं, लेकिन इन आदिवासियों का अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष लगातार चल रहा है.

बस्तर में की गई यह रैली इसी संघर्ष से जुड़ी है. आदिवासी समुदाय अपनी मांगों और अधिकारों के लिए जंगलों से निकलकर सीधे सड़कों पर उतर आए हैं, और सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों का खुलकर विरोध कर रहे हैं.

(इमेज क्रेडिट: News18)

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