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केरल: जागरुक आदिवासी अपने अधिकारों को बचाने के लिए छोड़ रहे हैं पुराने रीति-रिवाज़

केरल की किसी आदिवासी बस्ती में, मूप्पन (जिसका सीधा सीधा मतलब है सबसे बड़ा) आमतौर पर समुदाय का सबसे वरिष्ठ सदस्य होता है, जो मुखिया के रूप में काम करता है.

रिवाज के अनुसार, जब एक मूपन की मौत हो जाती है, तो यह जिम्मेदारी उसके अगले वरिष्ठतम आदमी पर आ जाती है. लेकिन पतनमतिट्टा की आदिवासी बस्तियों में अब ऐसा नहीं होता.

इन आदिवासी बस्तियों में अब मूप्पन के चयन के लिए सक्षमता और जोश की तलाश की जाती है, क्योंकि यह आदिवासी मानते हैं ​​कि यही वो गुण हैं जो उनकी आवाज हर प्लेटफार्म पर पहुंचा सकेंगी.

जब मणक्कयम बस्ती के मूप्पन कुमारन केशवन का पिछले साल 112 साल की उम्र में निधन हो गया, तो गांव के लोगों ने सबसे वरिष्ठ सदस्य को उनकी जगह लेने के लिए नजरअंदाज कर दिया, और 44 साल के मनोज ओ एम को मूप्पन चुना.

“एक मूप्पन को आजकल कई ज़िम्मेदारियाँ उठानी पड़ती हैं. उन्हें ग्राम पंचायत, आदिवासी विभाग और जिला प्रशासन द्वारा बुलाई गई बैठकों में शामिल होना पड़ता है. उन्हें बस्ती के सदस्यों के साथ स्थानीय निकायों और आदिवासी विभाग की परियोजनाओं के संदेश और विवरण साझा करने के लिए बैठक भी बुलानी पड़ती है. आदिवासी लोग पहले अपने मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मूप्पन के पास जाते हैं। उन्हें उनका मार्गदर्शन करना होगा और जरूरत पड़ने पर पेशेवर सहायता लेनी होती है,” मनोज ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा.

करिकुलम ऊरु के 45 साल के एक और युवा मूप्पन कृष्णनकुट्टी ने कहा, “मूप्पन एक गांव का नेता है. पहले की बात और थी, अब मूप्पन को सरकारी कार्यालयों, पुलिस थानों का दौरा करना पड़ता है और अलग अलग जरूरतों के लिए जनप्रतिनिधियों से मिलना पड़ता है. उन्हें सरकारी स्तर की बैठकों में ग्रामीणों के मामलों को भी पेश करना होता है. ऐसे में अगर हम मूप्पन के रूप में किसी वरिष्ठ सदस्य का चयन करते हैं, तो उसके लिए यात्रा करना और अलग अलग स्थानों पर जाना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए, हमने रिवाज को परे रख आधुनिक सोच को बढ़ावा देने का फैसला किया.”

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