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आदिवासी ग्राम सभा ने दिखाई ताक़त, पेसा और अनुसूचि 5 के मामले में शासन को हाई कोर्ट का नोटिस

छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले की ग्राम पंचायत चेरवापारा के गांव छिंददांड में पेसा कानून (PESA Act) का उल्लंघन किया जा रहा है. इस मामले में दायर जनहित याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

कोरिया जिले को भारतीय संविधान की पांचवीं अनूसूची में शामिल किया गया है. दरअसल जिला पंचायत कोरिया के माध्यम से ग्राम पंचायत चेरवापारा के छिंददांड गांव में दुकानों का निर्माण कर आवंटन की प्रक्रिया शुरू की गई.

इसके लिए सार्वजानिक सूचना भी जारी की गई थी. सूचना जारी होने के बाद ग्राम पंचायत में ग्राम सभा की बैठक बुलाई गई. इसमें प्रशासन की कार्रवाई का विरोध किया गया. ग्राम सभा द्वारा यह प्रस्ताव पारित किया गया कि दुकानों का निर्माण और आवंटन ग्राम सभा की अनुमति और सहमति से किया जाए.

ग्राम सभा के सदस्य गुलशन कुमार द्वारा शासन के सामने इसको लेकर आपत्ति भी प्रस्तुत की गई. बावजूद इसके कार्रवाई नहीं की गई. ऐसे में विजय सिंह और गुलशन कुमार ने अधिवक्ता सुशोभित सिंह और चन्द्र कुमार के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट

इसमें बताया गया की यह पूरा क्षेत्र संविधान की अनुच्छेद 244 एवं पांचवी अनुसूची द्वारा संरक्षित है. अनुसूचित क्षेत्र में निवास करने वाले अनुसूचित जनजाति के लोगों को विशेष संरक्षण प्राप्त है, जिससे उनके परंपरागत अधिकारों की सुरक्षा की जा सके. संसद द्वारा भी उनके अधिकारों को संरक्षित करने के लिए पेसा अधिनियम (PESA Act) 1996 पारित किया गया है, जो की छत्तीसगढ़ में भी लागू है.

पेसा अधिनियम 1996 की धारा 4 में प्रावधान किया गया है कि ग्राम पंचायत सीमा क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निर्माण एवं विकास कार्य के पूर्व ग्राम सभा की अनुमति और सहमति संबंधित ग्राम सभा से ली जाए. इस मामले में विकास कार्य एवं निर्माण के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली गई है. इस मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

आख़िर क्या है पेसा अधिनियम

पेसा का पूरा नाम ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक (The Provisions on the Panchyats Extension to the Scheduled Areas Bill) है. भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर यह सहमति बनी कि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक केंद्रीय कानून बनाना ठीक रहेगा, जिसके दायरे में राज्य विधानमंडल अपने-अपने कानून बना सकें. इसी दृष्टिकोण से दिसंबर, 1996 में संसद में विधेयक प्रस्तुत किया गया. दिसंबर, 1996 में ही यह दोनों सदनों से पारित हो गया और 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त कर लागू हो गया.

मौजूदा समय में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान में यह अधिनियम लागू होता है.

इस अधिनियम की खास बात यह है कि इसमें जनजातीय समाजों की ग्राम सभाओं को ज्यादा ताकत दी गई है. हर गांव में एक ग्राम सभा होगी जिसमें वे सभी लोग शामिल होंगे जिनका नाम ग्राम स्तर पर पंचायत के लिये तैयार की गई मतदाता सूची में शामिल है.

इस अधिनियम द्वारा संविधान के भाग 9 के पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को ज़रूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार करने का लक्ष्य है.

हालांकि इस अधिनियम से जुड़ी कुछ समस्याएं भी है. पहली तो ये कि पेसा के अंतर्गत हर गांव में एक ग्राम सभा का प्रावधान किया गया है, जबकि कई स्थितियों में एक ग्राम पंचायत एक से अधिक ग्राम सभाओं द्वारा चुनी जाती है. ऐसी स्थिति में समस्या यह आती है कि अगर पंचायत के किसी निर्णय पर अलग-अलग ग्राम सभाओं की अलग राय हो तो अंतिम निर्णय कैसे होगा.

जबकि यह अधिनियम सिर्फ उन क्षेत्रों पर लागू होता है जिन्हें 5वीं अनुसूची के तहत क्षेत्र माना गया है. ऐसे क्षेत्र जिनमें जनजातियों की काफी संख्या है लेकिन वे अनुसूचित क्षेत्र नहीं है तो इस कानून का लाभ नहीं उठा पाते.

ऐसे में पेसा अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव भी रखा गया. पेसा अधिनियम के क्रियान्वयन में आई समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने साल 2013 में उसमें संशोधन करने के लिए एक विधेयक तैयार किया था जो अभी पारित नहीं हो सका है.

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