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त्रिपुरा: विलुप्त हो रही कारबोंग जनजाति के लिए कार्य योजना का मसौदा तैयार

त्रिपुरा में हलम समुदाय की एक उप-जनजाति कारबोंग अब विलुप्त होने की कगार पर है. ऐसे में त्रिपुरा सरकार कारबोंग समुदाय के संरक्षण के लिए 1 करोड़ रुपये की कार्य योजना तैयार की है.

राज्य में पश्चिम त्रिपुरा और खोवाई ज़िले कारबोंग-बहुमत बस्तियां हैं. जहां एक को ओएनजीसी ने अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी योजना के तहत पहले ही अपनाया है. वहीं दूसरी बस्ती को दशकों से उपेक्षित रखा गया है.

पुराना चंद्र कारबोंग पारा, एक ऐसा इलाका है जिसमें कुल मिलाकर 11 कारबोंग परिवार हैं. जो एक छोटी अवधि के भीतर आधुनिक गांव में तब्दील होने के लिए तैयार हैं. बारामुरा पहाड़ी रेंज की तलहटी में स्थित यह गांव रूपचेरा ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आता है.

तेलियामुरा आरडी ब्लॉक के ब्लॉक विकास अधिकारी देबप्रिया दास ने कहा कि राज्य के आदिम जाति कल्याण विभाग के अनुसार, एक कार्य योजना का मसौदा तैयार किया गया है और बाद में अनुमोदन के लिए विभाग को भेज दिया गया है.

अतिरिक्त खंड विकास अधिकारी और कार्य योजना के प्रभारी, हरिपदा सरकार ने कहा, “यहां 43 लोगों की कुल आबादी वाले 11 परिवार हैं. उनमें से 22 पुरुष हैं और बाकी महिलाएं हैं. हमने कारबोंग समुदाय के समग्र विकास के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है. इस परियोजना में ग्रामीण संपर्क में सुधार, गांवों का विद्युतीकरण, निर्बाध पेयजल आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि शामिल हैं.”

हरिपदा सरकार ने कहा कि कुल परियोजना लागत 94 लाख रुपये से कुछ अधिक होने का अनुमान है. उन्होंने कहा, “मौजूदा स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों को मॉडल स्कूलों और आईसीडीएस केंद्रों में तब्दील किया जाएगा ताकि गरीब ग्रामीणों का सरकारी सुविधाओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित हो सके.”

हरिपदा सरकार ने यह भी बताया कि सभी परिवारों को हाल ही में शुरू की गई सुअर पालन योजना के लाभार्थियों के रूप में चुना गया है और प्रत्येक परिवार को 70 हज़ार रुपये की वित्तीय सहायता मिली है. हाल ही में स्थानीय विधायक अतुल देबबर्मा ने ग्रामीणों के बीच 300 लीटर क्षमता की पानी की टंकियों का वितरण किया है.

आवास के लिए, उन्होंने कहा कि पांच परिवारों को पहले ही इंदिरा आवास योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत आवास सहायता मिल चुकी है. PMAYG योजना के तहत लाभ के लिए तीन और परिवारों का चयन किया गया है. उन्होंने कहा, “हालांकि तीन परिवार आवास सहायता पाने के लिए पात्र नहीं हैं क्योंकि उनके पास पहले से ही पक्के घर और सरकारी नौकरी है.”

प्रखंड विकास अधिकारी ने यह भी कहा कि नवनियुक्त आदिम जाति कल्याण मंत्री राम पाड़ा जमातिया पहले ही गांव का दौरा कर चुके हैं और उन्हें अपने विभाग से हर तरह की मदद का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि हमारी ओर से सौंपी गई विशेष कार्य योजना विभाग के पास पड़ी है और जल्द ही इसे मंजूरी दे दी जाएगी.

इससे पहले, त्रिपुरा के हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कारबोंग समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास शुरू करने का निर्देश दिया था. आदिम जाति कल्याण विभाग के सूत्रों के अनुसार आदिवासी अनुसंधान संस्थान, अगरतला के सहयोग से उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं और लोक कलाओं को पुनर्जीवित करने का भी प्रयास किया जा रहा है.

कारबोंग जनजाति कौन हैं?

कारबोंग बड़े हलम समुदाय से संबंधित लोगों का एक छोटा समूह है. हालांकि कारबोंग के इतिहास का अभी पता नहीं चल पाया है. वे कहते हैं कि वे लंबे समय से त्रिपुरा में रह रहे हैं लेकिन वे उस राजा का समय या नाम नहीं बता सकते हैं जिसने उन्हें वहां बसने की अनुमति दी थी.

कारबोंग की पारंपरिक अर्थव्यवस्था में जंगलों से पत्ते, कंद इकट्ठा करना शामिल था. जंगली जानवरों और पक्षियों का शिकार करना, अपने आवास के पास पानी वाले क्षेत्रों के नालों से मछलियाँ पकड़ना. ये सभी चीजें उनके भोजन इकट्ठा करने की आदत को दर्शाते हैं.

इसके अलावा वे मैदानी इलाकों तक झूम खेती करते हैं, पालतू जानवरों और पक्षियों को पालते हैं, मछली पालन करते हैं और कुटीर उद्योगों में शामिल होते हैं. तेजी से बदलती सामाजिक व्यवस्था के साथ उन्होंने अपने रूढ़िवादी दृष्टिकोण को भी बदल दिया और आजीविका कमाने के लिए कई तरह की नौकरियों की ओर झुके.

(Image Credit: EastMojo)

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