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त्रिपुरा: मुख्यमंत्री के अनुरोध के बाद जनजाति सुरक्षा मंच ने डिलिस्टिंग रैली एक दिन के लिए की स्थगित

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा समर्थित संगठन – जनजाति सुरक्षा मंच (Janajati Suraksha Mancha) ने गुरुवार को घोषणा की कि उसने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा (Manik Saha) से ‘विशेष अनुरोध’ मिलने के बाद अपनी रैली को एक दिन के लिए स्थगित करने का फैसला किया है.

संगठन ने पहले कहा था कि वह क्रिसमस पर एक रैली आयोजित करेगा जिसमें धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने की मांग की जाएगी.

जेएसएम द्वारा प्रस्तावित रैली को राज्य के सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने निंदा की है और बाद में इसे “असंवैधानिक”, “भड़काऊ” और “मणिपुर जैसा संकट पैदा करने की क्षमता” वाला बताया.

गुरुवार शाम अगरतला में पत्रकारों से बात करते हुए जेएसएम के संयुक्त आयोजक कार्तिक त्रिपुरा ने कहा, “हमने घोषणा की थी कि हम 25 दिसंबर को अगरतला में एक रैली आयोजित करेंगे. लेकिन मुख्यमंत्री माणिक साहा के विशेष अनुरोध पर हमने रैली को 26 दिसंबर तक स्थगित करने का फैसला किया है. रैली का समय, स्थान और अन्य विवरण अपरिवर्तित रहेंगे.”

जेएसएम नेता ने कहा कि राज्य सरकार ने 26 दिसंबर को रैली के लिए अनुमति दे दी है. उन्होंने कहा कि वे रैली में 25 से 30 हज़ार की भीड़ की उम्मीद कर रहे हैं.

जेएसएम की मांग की आलोचना करने वाले विपक्षी दलों पर उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर कार्तिक त्रिपुरा ने कहा, “हम एक सामाजिक संगठन हैं. विपक्षी दल क्या कह रहे हैं, इस पर हमारा कोई प्रभाव नहीं है.”

रैली स्थगित करने के जेएसएम के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा, “यह हमारे लोकतंत्र और त्रिपुरा के लोकतांत्रिक लोगों की जीत है. 25 तारीख को रैली करने से रोकने के लिए पुलिस विभाग को धन्यवाद.”

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हालांकि, सीपीआई (एम) नेता ने कहा कि उनकी पार्टी अभी भी धर्मांतरित आदिवासियों को सूची से हटाने की मांग का विरोध कर रही है.

वहीं त्रिपुरा कांग्रेस प्रमुख आशीष कुमार साहा ने कहा कि रैली में जातीय आधार पर लोगों को भड़काने की क्षमता है और प्रशासन को रैली की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

साहा ने यह भी कहा कि जेएसएम सत्तारूढ़ भाजपा का एक मोर्चा है और “उनका एकमात्र उद्देश्य” लोगों को विभाजित करके राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है.

आशीष साहा ने आगे कहा, “सत्तारूढ़ भाजपा देश भर में विभाजनकारी राजनीति में लगी हुई है. राज्य की राजनीति देश के बाकी हिस्सों से अलग नहीं है. उन्होंने रैली को स्थगित करने के लिए संविधान और मुख्यमंत्री के रुख को कमजोर किया हे लेकिन अलग तारीख पर अनुमति देना दुर्भाग्यपूर्ण है.”

वहीं बुधवार को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के एकमात्र मंत्री शुक्लाचरण नोआतिया ने भी प्रस्तावित रैली की आलोचना की. उन्होंने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए धर्मांतरित आदिवासियों को सूची से हटाने की मांग उठाई जा रही है.

जेएसएम की मांग के बारे में पूछे जाने पर सीएम साहा ने अब तक कहा है, “इस पर मेरी कोई टिप्पणी नहीं है.”

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक त्रिपुरा हिंदू बहुल राज्य है. यहां की 36.74 लाख की कुल आबादी में 83.40 फीसदी हिंदू हैं.

जहां आबादी में 8.60 फीसदी यानी 3.16 लाख मुसलमान हैं, वहीं 4.35 फीसदी यानी 1.60 लाख ईसाई धर्म मानने वाले हैं.

ईसाई धर्म मानने वालों के बड़े हिस्से का नाता आदिवासी समुदाय से है.

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