त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा, टिपरा मोथा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दोनों सहयोगी दल एक-दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे हैं. इतना ही नहीं हाल के हफ्तों में भाजपा और टिपरा मोथा कार्यकर्ताओं के बीच झड़पों की खबरें सामने आई हैं.
2023 के विधानसभा चुनावों के बाद सहयोगी बनने वाले भाजपा और टिपरा मोथा के बीच रिश्ते खराब होते दिख रहे हैं.
पिछले महीने, खोवाई जिले के आशारामबाड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मन की बात” रेडियो कार्यक्रम को सुनते समय भाजपा समर्थकों पर हमला किया गया था.
कुछ दिनों बाद सिपाहीजला जिले में एक भाजपा कार्यकर्ता पर हमला हुआ, जिसके बाद मुख्यमंत्री माणिक साहा ने सार्वजनिक रूप से टिपरा मोथा को इस “हिंसक और अलोकतांत्रिक हमले” के लिए दोषी ठहराया.
उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह की हरकतें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी और पुलिस से अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा.
टिपरा मोथा और भाजपा
पूर्व शाही प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा द्वारा 2021 में “ग्रेटर टिपरालैंड” की मांग के साथ गठित टिपरा मोथा ने अपनी स्थापना के दो महीने बाद त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) चुनावों में जीत हासिल की और दो साल बाद राज्य विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
टिपरा मोथा पार्टी भाजपा के खिलाफ प्रचार करने के बावजूद आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और भूमि संबंधी मुद्दों के समाधान के वादे पर केंद्र और राज्य सरकार के साथ त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो गया.
हालांकि, रिश्ते अभी भी असहज बने हुए हैं.
जुलाई में 18 महीने पुराने समझौते की धीमी प्रगति का हवाला देते हुए, टिपरा मोथा के विधायक रंजीत देबबर्मा ने कहा था कि पार्टी “सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए लगभग तैयार है.”
उन्होंने कहा, “सरकार का हिस्सा होने का क्या मतलब है? हमने ग्रेटर टिपरालैंड की मांग छोड़ दी लेकिन कुछ नहीं हुआ.”
हालांकि प्रद्योत के हस्तक्षेप के कुछ ही घंटों बाद बयान वापस ले लिया गया लेकिन उन्होंने आदिवासियों में “वास्तविक निराशा” को स्वीकार किया.
टिपरा मोथा पार्टी के मीडिया कॉर्डिनेटर लामा देबबर्मा ने रविवार को बताया कि पार्टी मंगलवार को नई दिल्ली में “ग्रेटर टिपरालैंड” की मान्यता सहित कई मांगों को लेकर प्रदर्शन करेगी.
प्रद्योत देबबर्मा, राज्य के मंत्रियों, विधायकों और टीटीएएडीसी के पार्टी प्रतिनिधियों के साथ इस प्रदर्शन में शामिल होंगे.
दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर कार्यकर्ताओं की खरीद-फरोख्त का भी आरोप लगाती हैं. भाजपा का दावा है कि मार्च के बाद से टिपरा मोथा के कई कार्यकर्ता उसके साथ जुड़ गए हैं. जबकि टिपरा मोथा ने पश्चिमी त्रिपुरा में भाजपा से पंचायत और मंडल स्तर के नेताओं को अपने पाले में कर लिया है.
TTAADC ग्राम समिति चुनाव
दोनों गठबंधन दलों के बीच तात्कालिक विवाद आगामी टीटीएएडीसी ग्राम समिति चुनावों को लेकर है, जो वर्षों से लंबित हैं और अब सुप्रीम कोर्ट की जांच के घेरे में हैं.
पिछले महीने, भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने चुनाव आयोग (Election commission), राज्य चुनाव आयोग और सरकार को इस देरी के संबंध में नोटिस जारी किया और उन्हें स्पष्टीकरण देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया.
टिपरा मोथा के नेताओं ने अदालत के हस्तक्षेप का स्वागत किया और लंबित चुनावों को आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग बताया.
राज्य मंत्री बृषकेतु देबबर्मा ने कहा कि निर्वाचित ग्राम समितियों के बिना एडीसी में जमीनी स्तर पर शासन व्यवस्था प्रभावित हुई है, जिससे नीति आयोग और विकास निधि का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है.
भाजपा के साथ चुनाव लड़ने पर अनिश्चितता का संकेत देते हुए रंजीत देबबर्मा ने कहा, “इस समय हम यह तय करने की स्थिति में नहीं हैं कि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ें या अकेले लड़ें. अंतिम निर्णय हमारे सुप्रीमो लेंगे.”
तनाव को कम करने की कोशिश करते हुए प्रद्योत देबबर्मा ने कहा, “हम पहाड़ियों में भाजपा को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानते. इसके बजाय हमें माकपा से मुकाबला करना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार तिप्रासा समझौते के तहत आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए उत्सुक है लेकिन भाजपा के कुछ राज्य नेता कांग्रेस नेता अशोक भट्टाचार्य की तरह काम कर रहे हैं, जिन्होंने 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा एडीसी को मंजूरी देने के प्रयास के बावजूद इसका विरोध करने की कोशिश की थी.
इस बीच मुख्यमंत्री साहा ने पिछले हफ़्ते भाजपा के जनजातीय मोर्चा की एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें आदिवासियों तक पहुंच और चुनावी तैयारियों की समीक्षा की गई. इस बात पर ज़ोर देते हुए कि मोदी ने आदिवासी विकास को प्राथमिकता दी है, मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा ग्राम समिति और एडीसी, दोनों चुनावों के लिए पूरी तरह तैयार है.
इससे टिपरा मोथा नाराज़ है, जो टीटीएएडीसी क्षेत्रों में भाजपा के प्रवेश को एक सीधी चुनौती के रूप में देखता है.
भाजपा की चिंताओं को और बढ़ाते हुए, उसके एक अन्य सहयोगी आईपीएफटी ने एक अलग “टिपरालैंड” राज्य की मांग फिर से शुरू कर दी है.
हाल ही में अगरतला में अपने 17वें टिपरालैंड अलग राज्य की मांग दिवस पर पार्टी ने दावा किया कि वर्षों की गिरावट के बाद आदिवासियों के बीच उसकी लोकप्रियता फिर से बढ़ रही है.
त्रिपक्षीय समझौते में शामिल होने के बाद आईपीएफटी ने पहले इस मांग को कमतर आंका था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह आदिवासी राजनीति में अपनी स्थिति फिर से मजबूत कर रही है.
त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में 20 आरक्षित आदिवासी सीटें हैं, जिनमें से भाजपा के पास चार और टिपरा मोथा के पास 13 सीटें हैं.
माकपा और कांग्रेस के पास आदिवासी विधायक हैं, लेकिन कोई भी अनुसूचित जनजाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से नहीं चुना गया है.
इस तरह टीटीएएडीसी चुनाव 12 लाख की आबादी को कवर करते हैं, जिनमें से 84 फीसदी आदिवासी हैं, जो तीनों सत्तारूढ़ दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं.
जमीनी स्तर पर वफादारी में बदलाव, कमजोर गठबंधन और जमीनी स्तर पर चुनावों के मद्देनजर आने वाले महीने यह तय कर सकते हैं कि गठबंधन कायम रहेगा या टूट जाएगा.