Mainbhibharat

अरकू कॉफ़ी उगाने वाले आदिवासी किसानों पर मुसीबत, मनरेगा के तहत अब नहीं बढ़ेगा वेतन

आंध्र प्रदेश की मशहूर अरकू कॉफी मुश्किल में है क्योंकि केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत मज़दूरी बढ़ाना बंद कर दिया है. केंद्र सरकार के इस क़दम से मुख्य रूप से राज्य के आदिवासी समुदायों के 1.60 लाख किसान प्रभावित होंगे.

केंद्र सरकार ने सितंबर 2020 में आंध्र प्रदेश पंचायत राज और ग्रामीण विकास डिपार्टमेंट को एक अधिसूचना के ज़रिए सूचित किया था कि MNREGS को कॉफी की खेती में लगे किसानों के लिए नहीं बढ़ाया जाएगा. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने उसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) के इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था.

केंद्र सरकार की तरफ़ से किसी प्रतिक्रिया के अभाव में, अधिकारियों का मानना है कि वेतन समर्थन के बिना, आदिवासी किसान अरकू कॉफ़ी उगाने में असमर्थ होंगे, और धीरे-धीरे यह ब्रांड ही ख़त्म हो जाएगा.

अरकू कॉफ़ी यहां के आदिवासी किसानों द्वारा उगाई जाती है

मनरेगा के तहत आदिवासी भूमि पर नए कॉफी बागानों का निर्माण 2009-10 से विशाखापत्तनम में पूर्वी घाट के आदिवासी इलाक़ों में एक क्षेत्र-विशिष्ट योजना के रूप में शुरू हुआ था. फ़िलहाल अरकू कॉफी लगभग 1 लाख एकड़ में उगाई जाती है, मगर प्रति किसान यह औसतन केवल 1.25 एकड़ है.

आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को तर्क दिया कि मनरेगा की अनुसूची 1 के प्रावधानों के अनुसार, आजीविका में सुधार के लिए बागवानी, सेरीकल्चर, वृक्षारोपण और फ़ार्म फ़ौरेस्टरी जैसी गतिविधियाँ की जा सकती हैं.

इनमें कोई भी पौधा जो बारहमासी है और कृषि-जलवायु (agro-climate) परिस्थितियों के अनुकूल है, योजना के तहत उसकी कृषि की जा सकती है. लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि कॉफी एक कैश क्रॉप है, इसलिए इसे मनरेगा से नहीं जोड़ा जा सकता.

इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी के अधिकारी कहते हैं कि कॉफ़ी भले ही कैश क्रॉप हो, लेकिन आंध्र प्रदेश में इसे सिर्फ़ आदिवासी इलाक़ों में उगाया जाता है, तो इसे स्पैशल केस के रूप में देखा जाना चाहिए.

अरकू कॉफ़ी ने अरकू घाटी को दुनियाभर में मशहूर कर दिया है

अरकू के आदिवासी कॉफ़ी किसान अभी तक वेतन समर्थन काटे जाने से अंजान थे, अब वह दुविधा में हैं कि क्या करें. सरकार कई सालों से अरकू में कॉफ़ी की खेती को बढ़ावा दे रही है, अब अचानक इसके छिन जाने से इन आदिवासियों पर गहरा असर पड़ेगा.

अरकू ब्रांड आदिवासी सहकारी द्वारा उगाई जाती है, और इसने अरकू घाटी को पूरी दुनिया में ममशहूर कर दिया है.

Exit mobile version