Site icon Mainbhibharat

बालाघाट में बाघ हमले के कारण पंद्रह दिन में दो मौत

मध्यप्रदेश के बालाघाट ज़िले में एक बार फिर इंसान और बाघ के बीच संघर्ष गहराता जा रहा है.

शुक्रवार सुबह यानी 16 मई 2025 को एक 35 वर्षीय युवक को बाघ ने अपना शिकार बना लिया.

मृतक अनिल कछार गांव का रहने वाला था. वह सुबह महुआ और तेंदूपत्ता बीनने जंगल गया था.

दोपहर तक जब वह वापस नहीं लौटा तो परिवार और गांव के लोग उसे ढूंढने निकले.

गांव से थोड़ी दूरी पर गांववालों को सिवनीवानी जंगल में अनिल का खून से सना शव मिला. शरीर का पिछला हिस्सा गायब था.

पुलिस और वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची. अधिकारियों ने कहा कि अनिल पर बाघ ने हमला किया और उसे खींचकर ले गया. फ़िर शरीर के हिस्से को खा लिया.

आजीविका के लिए जंगल जाना ज़रूरी

अनिल हर दिन की तरह उस दिन भी जंगल गया था. महुआ और तेंदूपत्ता जैसी चीजें आदिवासी परिवारों की कमाई का ज़रिया हैं.

यही वजह है कि हर साल गर्मी के दिनों में लोग सुबह-सुबह जंगल जाते हैं. लेकिन अब यह जंगल जानलेवा बनता जा रहा है.

पिछले 15 दिनों में दूसरी मौत

इस घटना से सिर्फ 13 दिन पहले, 3 मई को 45 वर्षीय प्रकाश पने पर भी बाघ ने हमला किया था.

वह कटंगी रेंज के पास अपने खेत में काम कर रहा था. सुबह 5 बजे के करीब बाघ ने झाड़ियों से निकलकर उस पर पीछे से हमला किया था.

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हमले के समय वे भी खेत में मौजूद थे.

वे जान बचाकर भागे और बाद में पत्थर लेकर लौटे. लेकिन तब तक बाघ प्रकाश को खेत में घसीट चुका था.

जब लोग पहुंचे, तब तक उसका शरीर अधखाया मिला. एक ग्रामीण ने बताया कि बाघ शरीर के पास बैठा था और दो बार दहाड़ा.

इस घटना के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग की चौकी का घेराव किया था.

गांववालों ने गुस्से में आकर वन रक्षक गुलाब सिंह उइके को घेर लिया और उन पर लापरवाही का आरोप लगाया.

गांववालों का आरोप था कि घटना से दो दिन पहले बाघ ने एक बकरी को मारा था लेकिन गार्ड ने इसे हल्के में लिया.

वन विभाग का पक्ष और आंकड़े

वन विभाग के अफसरों का कहना है कि इन इलाकों में बाघों की संख्या बढ़ रही है लेकिन शिकार की कमी की वजह से वे बस्तियों की तरफ आने लगे हैं.

बालाघाट का इलाका पेंच-कान्हा कॉरिडोर में आता है, जहां करीब 30-35 बाघ हैं. इनमें से कई बार ये बाघ बफर ज़ोन से बाहर निकल जाते हैं.

साल 2025 की शुरुआत से अब तक छह से आठ टाइगर अटैक के मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से चार बांधवगढ़ और दो बालाघाट में हुए हैं. इन हमलों में मवेशी और मानव दोनों मारे गए हैं.

क्या चाहते हैं गांववाले

गांववालों की मांग है कि सिवनीवानी जैसे जंगलों को संरक्षित घोषित किया जाए.

वहां कैमरे और गश्त की व्यवस्था हो. उनका कहना है कि जब तक जंगलों की सुरक्षा और निगरानी नहीं बढ़ाई जाएगी, ऐसी घटनाएं नहीं रुकेंगी.

(Image is for representational purpose only)

Exit mobile version