तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में मंगलवार को जंगली हाथियों के हमले में दो लोगों की जान चली गई.
पहला हादसा सुबह मसिनगुड़ी के बोक्कापुरम इलाके में हुआ. यहाँ 42 वर्षीय आदिवासी पुरुष आर. पुत्माथन हाथी के हमले का शिकार हो गए.
पुत्माथन थक्कल आदिवासी बस्ती में अकेले रहते थे. वे अपनी पत्नी से अलग हो चुके थे और पिछले दस साल से इसी इलाके में रह रहे थे.
घटना के दिन वे अपनी माँ से मिलने शोलूर जा रहे थे. सुबह करीब साढ़े नौ बजे जैसे ही वे जंगल की सीमा से गुज़रे, एक जंगली हाथी ने उन पर हमला कर दिया.
हाथी ने अपनी सूँड़ और दाँत से पुत्माथन के पेट पर चोट मारी और फिर वहाँ से चला गया. थोड़ी देर बाद आसपास के लोगों और वन विभाग को शोर सुनाई दिया.
सूचना मिलते ही सिंगारा वन रेंज की टीम पहुँची. उस समय पुत्माथन गंभीर रूप से घायल थे.
उन्होंने खुद बताया कि उन पर हाथी ने हमला किया है.
वन विभाग ने तुरंत उन्हें मसिनगुड़ी के सरकारी अस्पताल पहुँचाया.
वहाँ प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें उधगमंडलम के सरकारी अस्पताल रेफर किया गया. लेकिन वहाँ पहुँचने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मृतक के परिवार को शुरुआत में 50 हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी. बाक़ी 9.5 लाख रुपये का मुआवज़ा मेडिकल और मृत्यु प्रमाण पत्र जमा करने के बाद दिए जाएँगे.
अधिकारियों ने बताया कि इलाके में हाथी की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए चार जोड़ी कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं.
साथ ही, अतिरिक्त कर्मचारी तैनात किए जाएंगे जिससे इंसान और हाथी के बीच टकराव को रोका जा सके.
दूसरा मामला: नेल्लिमट्टम में कुली की मौत
दूसरा हादसा मंगलवार शाम को डिंडीगुल ज़िले के नेल्लिमट्टम इलाके में हुआ. यहाँ राजेश नामक एक मज़दूर की जंगली हाथी के हमले में मौत हो गई.
इस घटना के बाद स्थानीय लोग और मृतक के परिजन आक्रोशित हो उठे. उन्होंने शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने से रोक दिया और सड़क पर धरना शुरु कर दिया है.
लोगों की माँग थी कि वन विभाग मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए.
ग्रामीणों का कहना है कि लगातार हो रही ऐसी घटनाओं से लोग दहशत में हैं और जीवन-यापन करना कठिन हो गया है.
बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष
इन दोनों घटनाओं से यह साफ़ है कि जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी लगातार खतरे में है.
हाथी और अन्य वन्यजीव भोजन और जगह की तलाश में आदिवासी बस्तियों की तरफ़ आ रहे हैं.
इससे आदिवासियों की जान पर संकट बढ़ रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस संघर्ष को कम करने के लिए ज़रूरी है कि जंगलों के पास रहने वाले समुदायों को सुरक्षित रास्ते, बाड़ और चेतावनी प्रणाली उपलब्ध कराई जाए.
साथ ही, वन विभाग को लगातार निगरानी और त्वरित कार्रवाई करनी होगी.
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