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आंध्र प्रदेश के दो आदिवासी गांवों में खनन पट्टे का विरोध

आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली जिले के पेरागोटेपलेम और गडवापलेम गांवों के आदिवासियों ने शुक्रवार, 10 फरवरी को आयोजित एक जन सुनवाई में खनन पट्टे को रद्द करने का आह्वान किया. खनन पट्टा 2018 में एक कारोबारी को जारी किया गया था और इससे उनके खेत के करीब 22 एकड़ में काले पत्थर और बजरी की निकासी की अनुमति मिली.

अनकापल्ली के जिला राजस्व अधिकारी की अध्यक्षता में जन सुनवाई में आदिवासी और गैर-आदिवासी सहित कम से कम 120 लोगों ने हिस्सा लिया. निवासियों के मुताबिक कथित तौर पर बीएमजे अप्पा राव नाम के कारोबारी जिसे पट्टा जारी किया गया है, उसके सहयोगियों ने भी बैठक में भाग लिया.

आदिवासी कार्यकर्ता के. गोविंद राव के मुताबिक, एक महीने पहले अखबार में नोटिस छपने तक इस लीज एग्रीमेंट के बारे में किसी को पता नहीं था. उन्होंने कहा कि हम लीज का विरोध करते हैं और इसे रद्द करने की मांग करते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि खनन के लिए जरूरी है कि भूमि पथरीली हो और खेती योग्य न हो. लेकिन पट्टे में उल्लिखित भूमि का एक बड़ा हिस्सा खेती योग्य भूमि है. अधिकारियों ने एक झूठी रिपोर्ट दी है जिसमें दावा किया गया है कि भूमि पर कोई खेती नहीं होती थी.

पेरगोट्टपलेम और गडवापलेम गांवों की कोंडा डोरा और गडवा जनजातियां खनन के लिए पट्टे पर दी गई 22 एकड़ जमीन में से 10 एकड़ में यूकेलिप्टस यानि नीलगिरी और काजू उगा रही हैं.

इन दो छोटे गांवों की संयुक्त आबादी 100 से कम है और खनन स्थल के करीब हैं. गांवों में रहने वाले दो आदिवासी परिवारों ने कथित तौर पर दावा किया कि उन्हें सरकार से जमीन के पट्टे मिले हैं.

उधर जन सुनवाई में अधिकारियों ने कथित तौर पर आश्वासन दिया कि आदिवासियों की जो भी आपत्तियां है वो सरकार के सामने रखी जाएंगी. हालांकि, आदिवासियों ने अनुरोध किया कि कलेक्टर काजू बागानों का सर्वेक्षण करने और खनन को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करने के लिए संयुक्त कलेक्टर नियुक्त करें.

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