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कर्नाटक के इन दो आदिवासी गांवों से विकास मीलों दूर

कर्नाटक के चिक्कमगलुरु ज़िले के मुदिगेरे तालुक के दो छोटे-छोटे आदिवासी गांवों के आसपास से भी जैसे विकास गुज़रा ही नहीं है. इन बस्तियों में रहने वाले गौडलू आदिवासियों की पक्की सड़कों, पुलों, अस्पतालों या स्कूलों तक पहुंच नहीं है, और यह लोग अपनी सभी बुनियादी ज़रूरतों के लिए 20 किमी दूर एक शहर पर निर्भर हैं.

यह दोनों आदिवासी गांव – करले और कलकोडु ईचलुहोले – समसे ग्राम पंचायत के तहत आते हैं. जबकि ईचलुहोल में पांच परिवार हैं, करले में 20 परिवार रहते हैं. कुद्रेमुख नैशनल पार्क के किनारे बसी इन दो बस्तियों में मॉनसून के मौसम में तेज़ बारिश होती है, जो इन निवासियों की समस्याओं को चौगुना कर देती हैं.

अभी पिछले हफ्ते ही करले के दो युवाओं को अपनी 70 साल की दादी, जो बीमार पड़ गई थीं, को पास के शहर कलासा पहुंचाने के लिए एक कंबल और दो बांस की डंडियों से अस्थायी स्ट्रेचर बनाया. उस स्ट्रेचर में दादी को कंधे पर लिए 20 किमी लंबी यात्रा की.

संकरे, कच्चे रास्ते पर बांस से बने एक छोटे से पुल को पहले पार किया. इस पुल की भी एक कहानी है. उस जगह पर पहले जो पुल मौजूद था, वो 2019 में आई बाढ़ में बह गया था. जब कोई आधिकारिक मदद उन्हें नहीं मिली, तो आदिवासियों ने खुद एक पुल का निर्माण किया.

ईचलुहोल के लोगों को भी कलासा शहर तक पहुंचने के लिए भद्रा नदी की एक ट्रिब्यूटरी को पार करना पड़ता है. उस नदी का पुल भी बाढ़ में बह गया था, तो निवासियों ने खुद लकड़ी का एक फुट ब्रिज बनाया है.

करले गांव के केपी नवीन ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 75 साल के बुजुर्ग ही नहीं, हर बीमार व्यक्ति और बुजुर्ग को कंधों पर उठाकर कलसा तक ले जाना पड़ता है. “हमें सड़क संपर्क की तख़्त ज़रूरत है. बारिश के मौसम में हमारी स्थिति बेहद ख़राब हो जाती है.”

एक और निवासी प्रेमा ने कहा कि उन्होंने 7 और 12 अक्टूबर को मुदिगेरे के विधायक एमपी कुमारस्वामी, लोकसभा सदस्य शोभा करंदलाजे और उपायुक्त केएन रमेश को अपने रहने की स्थिति का विवरण देते हुए एक ज्ञापन सौंपा था. इस ज्ञापन में इन लोगों ने उचित सड़क संपर्क और एक स्थायी पुल की भी मांग की है.

गांवों के विकास के लिए वन विभाग की मंज़ूरी ज़रूरी

अखबार के मुताबिक़ सहायक आयुक्त डॉ एचएल नागराज का कहना है कि चूंकि बस्तियां नैशनल पार्क के अंदर बसी हैं, इसलिए किसी भी विकास गतिविधि के लिए वन विभाग की मंज़ूरी ज़रूरी है. सभी विकास गतिविधियां प्रतिबंधित हैं क्योंकि दोनों बस्तियां संरक्षित इलाक़े में हैं.

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