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कुपोषण और ग़रीबी के लिए मशहूर इरुला आदिवासी समुदाय अब जाना जाएगा अपने दो युवा डॉक्टरों के लिए

केरल के पालक्काड ज़िले के अट्टपाड़ी इलाक़े में ज़्यादातर आदिवासी रहते हैं. देश के बाक़ि आदिवासी गावों और इलाक़ों की तरह ही अट्टपाड़ी भी बच्चों में कुपोषण और समय से पहले जन्म लेने से होने वाली मौतों के लिए मशहूर है.

लेकिन आज अट्टपाड़ी एक अच्छी ख़बर के लिए सुर्खियों में है. इस शैक्षणिक वर्ष में अट्टपाड़ी के इरुला आदिवासी समुदाय से आने वाले दो डॉक्टरों ने इलाक़े का नाम रोशन किया है. एक हैं कोट्टतरा, अगली की कार्तिका रघु, और दूसरे हैं पुत्तूर के राहुल राज.

कार्तिका अब अपनी हाउस सर्ज़ेंसी यानि इंटर्नशिप के लिए त्रिशूर ज़िले के एक अस्पताल जाएंगी. अपने माता-पिता, शिक्षकों और कोट्टतरा आदिवासी स्पेशल्टी अस्पताल के डॉक्टर गुरु को धन्यवाद करते हुए कार्तिका ने कहा कि उनकी मदद के बिना वो आगे नहीं बढ़ पातीं.

उधर, डॉ राहुल राज ने टीडी मेडिकल कॉलेज, आलप्पुझा से पास आउट किया है. उनके पिता दुरैराजा एक किसान हैं, और राहुल की मां, विजयलक्ष्मी एक आंगनवाड़ी शिक्षिका हैं. राहुल कहते हैं कि उनके माता-पिता ही उनकी प्रेरणा हैं.

राहुल अब पीजी एंट्रेंस कोचिंग के लिए जाना चाहते हैं, और उसके अंकों के आधार पर अनुशासन का चयन करेंगे. जबकि कार्तिका आगे चलकर सामान्य चिकित्सा (General Medicine) में पीजी करना चाहती हैं.

अट्टपाड़ी में स्वास्थ्य का सच

2013 में पहली बार अट्टपाड़ी की स्वास्थ्य दिक्कतें दुनिया के सामने आईं, जब यहां 50 से ज़्यादा बच्चों की मौत की ख़बरें आईं. इसके बाद अलगे कई सालों तक हुई खी मौतों ने यहां रहने वाली आदिवासी आबादी के स्वास्थ्य पर प्रकाश डाला.

कुपोषण और शिशु मृत्यु दर समेत स्वास्थ्य के जुड़े कई और मुद्दों की पहचा की गई. इसके बाद केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने इन समुदायों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और संबंधित सुविधाएं देने के लिए वित्तीय पैकेज की घोषणा की.

2020 में किए एक अध्ययन में पाया गया कि यह मुफ्त सेवाएं स्वास्थ्य प्रणाली तक ख़राब पहुंच और शिशु मृत्यु दर के उच्च स्तर का समाधान नहीं कर पाए.

अट्टपाड़ी में कुल 192 गाँव हैं, जिनमें मुदुगा, कुरुम्बा और इरुला आदिवासी समुदायों के लोग रहते हैं. अध्ययन में पाया गया कि दूसरे आदिवासी समाजों की तरह ही इन आदिवासी समुदायों के लोग अपने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच तालमेल नहीं बिठा पाए हैं.

ऐसे में कार्तिका और राहुल जैसे आदिवासी युवाओं का डॉक्टर बन जाना इन समुदायों के स्वास्थ्य को बेहतर ही करेगा.

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