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UGC हायर एजुकेशन की किताबों को आदिवासी भाषाओं में करेगा ट्रांसलेट

केंद्र सरकार आदिवासी भाषाओं को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने के लिए कई सुधारों पर काम कर रही है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धमेंद्र प्रधान ने हाल ही में कहा था कि उच्च शिक्षा के लिए किताबें अन्य 12 भारतीय भाषाओं के साथ आदिवासी भाषाओं में भी उपलब्ध होंगी.

धमेंद्र प्रधान ने कहा था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) उनका भारतीय भाषाओं में अनुवाद करवाएगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 स्थानीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देती है, जिसका फायदा आदिवासी समुदायों को भी मिलेगा.

धमेंद्र प्रधान ने 21 दिसंबर को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, “शिक्षा किसी भी आदमी के जीवन में काफी बदलाव लाता है और इस प्रकार, हमारा ध्यान यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा आदिवासियों तक पहुंचे. जब उनकी भाषा औपचारिक होगी तो उन्हें इसका लाभ मिलेगा. ऐसे में उनकी भाषा में किताबों को ट्रांसलेट किया जाएगा.”

उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के प्रथम वर्ष की किताबें आदिवासी भाषाओं में उपलब्ध कराने का काम तेज़ी से चल रहा है.

केंद्रीय शिक्षा मंत्री के अनुसार, स्थानीय भाषाओं और मातृभाषा में शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के प्रमुख स्तंभों में से एक है और पीएम मोदी देश की आदिवासी आबादी को लंबे समय से सम्मान दे रहे हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि एकलव्य स्कूलों के लिए 2014-15 में 3,832 करोड़ रुपये का बजट था, जो 2022-23 में बढ़कर 8,500 करोड़ रुपये हो गया है.

प्रधान ने कहा, “यह पीएम मोदी की जनजातीय आबादी के उत्थान के लिए उनकी पहचान का सम्मान करने से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वरोजगार प्रदान करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.”

यूजीसी द्वारा शुरुआत में अंग्रेजी की किताबों का तेलुगू, तमिल, मलयालम, उड़िया, मराठी, कन्नड़, गुजराती, बंगाली आदि भाषाओं में अनुवाद किया जाएगा. छात्र बीए बीएससी और बीकॉम की पढ़ाई स्थानीय भाषा में कर सकेंगे. इसके अलावा अपनी मातृभाषा से भी अंडरग्रैजुएट कोर्स की पात्रता रखेंगे.

माना जा रहा है कि 1 साल में कई किताबों का अनुवाद पूरा कर लिया जा सकता है. इसका लाभ यह होगा कि अनुवादक के रूप में भी कई सारे लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार की माने तो आयोग द्वारा इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि स्थानीय भाषा की किताबें ज्यादा महंगी ना हो. इसके लिए आयोग नोडल एजेंसी के रूप में कार्यरत रहेगा.

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