ओडिशा (odisha) के आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ने आरक्षित भूमि (reserve land) के बदले मिलने वाले मुआवज़े (compensation) पर सहमति जाताई है.
भारतमाला प्रोजेक्ट (Bharatmala project) के अंतर्गत रायपुर से विशाखापत्तनम तक जाने के लिए 464 किलोमीटर की लंबी सड़क (road connectivity) बनाई जा रही है. यह सड़क ओडिशा के दो ज़िले कोरापुट और नबरंगपुर से होकर भी गुजरेगी. और इन दो ज़िलों में आदिवासी इलाके पड़ते हैं.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक नबरंगपुर के रायघर ब्लॉक में सड़क बनाने के लिए कुल 76.429 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है. जिसके साथ आदिवासियों के लिए आरक्षित 9.71 हेक्टेयर भूमि भी शामिल है. जिसे वन अधिकार अधिनियम के तहत नबरंगपुर में रहने वाले 63 आदिवासियों के लिए आरक्षित किया गया है.
इसलिए सड़क बनाने के लिए सरकार द्वारा इन 63 आदिवासियों को 9.71 हेक्टेयर भूमि के बदले लगभग 85,76,375 रूपयें दिए गए है.
हालांकि प्रत्येक आदिवासी को कितना मुआवजा मिला है. इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण मौजूद नहीं है.
रायघर तहसील के तहसीलदार, सीमांचल पात्रा बताते है की राज्य सरकार द्वारा इस मुआवजे को लेकर गाइडलाइन्स भी जारी की गई थीं.
उन्होंने यह जानकारी भी दी है कि आदिवासियों को अपनी ज़मीन का मुआवज़ा तो मिला है लेकिन यह मार्केट रेट के हिसाब से नहीं दिया गया है.
यहां ये भी बात ध्यान देने वाली है की वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आदिवासियों को व्यक्तिगत अधिकार का पट्टा तो मिलता है. लेकिन वे इस ज़मीन को किसी को बेच नहीं सकते हैं.
दरअसल वन अधिकार कानून जंगल पर आदिवासियों के ऐतिहासिक अधिकार तो मानता है ही है साथ ही उसके भरण-पोषण के लिए ज़मीन की व्यवस्था भी करता है.
इस मामले में अधिकारियों ने बताया है कि सरकार मुआवजे के बदले इस ज़मीन को ले सकती है. लेकिन सरकार भी आदिवासी की सहमति से ही इस ज़मीन का अधिग्रहण कर सकती है.
इसी सिलसिले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय मिली जानकारी के अनुसार जनवरी 2018 से लेकर अप्रैल 2023 तक 90000 हेक्टेयर फॉरेस्ट लेंड को सरकारी प्रोजेक्ट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है.
इसमें ये भी जानकारी दी गई है की पूरे देश में सबसे ज्यादा फॉरेस्ट लेंड का इस्तेमाल मध्यप्रदेश में किया गया है. वहीं दूसरे नंबर में ओडिशा में 13,304.79 हेक्टेयर फॉरेस्ट लेंड इस्तेमाल हुआ है.
ओडिशा में सरकार ने आदिवासियों की सहमति से ही ज़मीन का अधिग्रहण किया है. लेकिन इस अधिग्रहण में कुछ मुद्दे हैं जिनके जवाब नहीं मिले हैं. पहला ये कि आदिवासियों को ज़मीन के बदले में जो पैसा मिला है वह मार्केट के हिसाब से नहीं मिला है.
दूसरा ज़रूरी मसला ये है कि आदिवासियों को जो पैसा मिलता है वे अक्सर उस पैसे को ब्याह-शादी या मकान बनाने में ख़र्च कर देते हैं. उसके बाद उसका जीना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसकी ज़मीन उसके हाथ से निकल चुकी होती है.
इसलिए बेहतर होता कि ज़मीन के मुआवज़े के साथ साथ उन्हें कोई वैकल्पिक ज़मीन भी दी जाती जिसके सहारे वे अपना परिवार पाल सकते.