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ओडिशा के क्योंझर में संथाल आदिवासी UCC के विरोध में सड़कों पर उतरे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (UCC) का जबसे जिक्र किया है तब से देशभर में इस पर हंगामा छिड़ गया है. देश के कई आदिवासी संगठन इस आशंका में हैं कि अगर यह क़ानून लागू हुआ तो उनके रीति-रिवाजों पर भी इसका असर पड़ेगा.

झारखंड से लेकर पूर्वोत्तर के आदिवासी समूहों ने अपनी-अपनी चिंताएं जाहिर की. 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने UCC का विरोध जताते हुए आशंका जताई कि इससे उनके प्रथागत कानून कमजोर हो जाएंगे. 

नागालैंड की बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (NBCC) और नागालैंड ट्राइबल काउंसिल (NTC) दोनों आदिवासी संगठनों का कहना है कि UCC अल्पसंख्यकों के अपना धर्म पालन करने के हक से वंचित करेगा. मेघालय के Khasi Hills Autonomous District Council( KHADC) ने भी 24 जून को एक प्रस्ताव पारित किया है. .

वहीं आदिवासी समन्वय समिति (ASS) ने कहा कि UCC आने से कई जनजातीय परंपरागत कानून और अधिकार कमजोर हो जाएंगे. छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी संगठनों ने UCC पर ऐतराज जताया है.

अब यूसीसी को ओडिशा के क्योंझर में संथाल आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. संथाल समुदाय के सैकड़ों लोग प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के विरोध में सड़कों पर उतरे थे.

संथाल, जिस समुदाय से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी आती हैं, ज्यादातर ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में वितरित हैं. गोंड और भील के बाद संथाल भारत में तीसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जनजाति समुदाय है. अपने सामाजिक उत्थान के बावजूद संथाल अपनी जड़ों से जुड़े रहना पसंद करते हैं.

वे प्रकृति पूजक हैं और सदियों पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं. ऐसे में उन्हें डर है कि यूसीसी लागू होने पर उनकी मान्यताएं और उनके समाज को नियंत्रित करने वाले रूढ़िवादी नियम प्रभावित होंगे.

पारंपरिक धनुष-बाण और अन्य हथियारों से लैस सैकड़ों आदिवासी क्योंझर जिला कलेक्टरेट के सामने इकट्ठे हुए और प्रस्तावित यूसीसी कार्यान्वयन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और साथ ही 10-सूत्रीय मांगों पर एक ज्ञापन सौंपा.

विरोध के तौर पर उन्हें नाचते, गाते और अन्य पारंपरिक अनुष्ठान करते देखा गया.

‘राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद’ के सदस्य शिव शंकर मार्नी ने कहा, “2003 में संविधान द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद भी संथाली भाषा को वह मान्यता नहीं मिल रही है जिसकी वह हकदार है. इसलिए हम अपनी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सीएम नवीन पटनायक से हमारी भाषा को वह मान्यता देने की मांग करते हैं जिसकी वह हकदार है.”

उन्होंने आगे कहा, “हम यह भी मांग करते हैं कि संथाली भाषा प्राथमिक विद्यालयों से लेकर स्नातक स्तर तक पढ़ाई जाए. इसके अलावा, हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन या बौद्ध नहीं हैं। हमारा अपना धर्म ‘सरना’ है और हम मांग करते हैं कि हमारे धर्म को जनगणना में शामिल किया जाए.”

वहीं विरोध प्रदर्शन में शामिल क्योंझर विधायक मोहन चरण माझी ने कहा कि वह यूसीसी के लिए अपना समर्थन देंगे लेकिन इससे उनके समुदाय पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ना चाहिए.

माझी ने कहा, “मैं यूसीसी का समर्थन करूंगा लेकिन उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह किसी भी तरह से मेरे समुदाय को प्रभावित न करे. इसलिए मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह आत्मनिरीक्षण करें और बुद्धिमानीपूर्ण निर्णय लें ताकि कोई भी प्रभावित न हो और इससे सभी को लाभ हो.”

पीएम मोदी के बयान के बाद छिड़ी बहस

दरअसल, 27 जून 2023 को मध्य प्रदेश के भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि संविधान में सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार देने की बात कही गई है और इस लिहाज़ से देश में एक समान नागरिक संहिता लागू करना ज़रूरी है.

पीएम मोदी ने कहा था, ‘हम देख रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है. एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पाएगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा?’

पीएम मोदी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है. सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है. कहता है कॉमन सिविल कोड लाओ. लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं. लेकिन भाजपा सबका साथ, सबका विकास की भावना से काम कर रही है.”

पीएम मोदी के इस बयान के बाद UCC पर राजनीतिक बहस छिड़ गई है. कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी का मुद्दा उठाया है.

कांग्रेस का आरोप है कि पीएम मोदी महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल कर रहे हैं.

वहीं AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए कहा, ‘भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं. इसलिए वह ऐसी बातें कहते हैं. शायद भारत के प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 29 के बारे में नहीं पता. क्या आप UCC के नाम पर देश से उसकी बहुलता और विविधता को छीन लेंगे?’

इसके अलावा आदिवासी संगठन भी समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं. आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम साही मुंडा ने कहा, ‘हम विभिन्न वजहों से UCC का विरोध करते हैं. हमें डर है कि दो आदिवासी कानून- छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट यूसीसी के कारण प्रभावित हो सकते हैं. ये दोनों कानून आदिवासी भूमि की रक्षा करते हैं.’

UCC का आदिवासी समुदाय पर क्या असर होगा?

प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अगर यूसीसी लागू हुआ तो आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं का क्या होगा.

सीएम बघेल ने कहा, “आप (बीजेपी) हमेशा हिंदू-मुसलमान दृष्टिकोण क्यों सोचते हैं? छत्तीसगढ़ में आदिवासी हैं. उनके नियम रूढ़ी परंपरा के हिसाब से हैं. वो उसी से चलते हैं. अब समान नागरिक संहिता कर देंगे तो हमारे आदिवासियों की रूढ़ी परंपरा का क्या होगा.”

झारखंड के भी 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने ये निर्णय लिया है कि वो विधि आयोग के सामने यूनिफॉर्म सिविल कोड के विचार को वापस लेने की मांग रखेंगे.

इन आदिवासी संगठनों का मानना है कि यूसीसी के कारण आदिवासियों की पहचान ख़तरे में पड़ जाएगी.

वहीं मेघालय के खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ने माना है कि यूसीसी से खासी समुदाय के रिवाज, परंपराओं, मान्यताओं, विरासत, शादी और धार्मिक मामलों से जुड़ी आज़ादी पर असर पड़ेगा.

खासी समुदाय मातृसत्तात्मक नियमों पर चलता है. इस समुदाय में परिवार की सबसे छोटी बेटी को संपत्ति का संरक्षक माना जाता है और बच्चों के नाम के साथ मां का उपनाम लगता है. इस समुदाय को संविधान की छठी अनुसूची में विशेष अधिकार मिले हुए हैं.

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे.

UCC पर बीजेपी का तर्क

समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है. बीजेपी ने हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता का वादा किया था. उधर उत्तराखंड जैसे राज्य अपनी समान संहिता तैयार करने की प्रक्रिया में हैं.

तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा था कि समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र ने साफ कहा है कि संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निदेशक तत्व का विस्तृत ब्यौरा है जिसके अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है.

अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.

अगर UCC लागू होता है तो क्या-क्या बदलाव होंगे?

UCC के लागू होते ही हिंदू (बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत), मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों को लेकर सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे.

अगर UCC लागू होता है तो देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे.

बीजेपी का तर्क है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से देश में एकरूपता आएगी.

हालांकि, यूनिफॉर्म सिविल कोड व्यापक बहस का मुद्दा है. इसे लागू करने से पहले सभी स्टेकहोल्डर्स की चिंताओं को सुनना, भरोसे में लेना, उनसे आम सहमति बनाना जरूरी है. 

(Image credit: Odisha TV)

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