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4 महीने की आदिवासी बच्ची की मौत से हिली केरल विधान सभा, जाँच के आदेश

आज केरल की विधान सभा में चार महीने के बच्चे की मौत का मामले पर विपक्ष ने रोष दर्ज कराया. यह मामला केरल के अट्टापाड़ी ज़िले के मुरुगला आदिवासी बस्ती का है. इस मामले को लेकर विधान सभा में विपक्ष ने सदन की सामान्य कार्रवाई को बाधित किया. 

इस मसले पर शून्यकाल में स्थगन प्रस्ताव लाने की माँग रखी गई. IUML के विधायक एन शमशुद्दीन ने स्थगन प्रस्ताव की माँग करते हुए इस पर चर्चा की माँग की. इस पूरे मसले पर यूडीएफ़ (United Democratic Front) ने सदन से वॉक आउट किया. 

सदन में इस मामले को उठाने वाले विधायक शमशुद्दीन ने कहा कि एक बाप अपनी बेटी को लेकर मूसलाधार बारिश में पैदल अस्पताल ले कर जा रहा था. इस तस्वीर को देख कर सरकार को शर्मिंदा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह आदिवासी जिस तरह से अपनी बच्ची को जंगल से पैदल अस्पताल ले जाने को मजबूर दिखाई देता है, उससे राज्य के आदिवासियों की हालत समझी जा सकती है. 

इस मुद्दे पर आज विपक्ष ने वाम मोर्चा की सरकार को घेर लिया था. इस मुद्दे पर नेता विपक्ष वीडी सतीशन ने कहा कि आदिवासियों में कुपोषण और देखभाल की कमी से बच्चों की मौत होती है. उन्होंने कहा कि कोट्टातारा आदिवासी अस्पताल में डॉक्टर, नर्स और दवाइयों का अभाव है. 

उन्होंने कहा कि उस अस्पताल के अधीक्षक को राजनीतिक कारणों से वहाँ से निकाल दिया गया. उनका तबादला कहीं और कर दिया गया है. 

उन्होंने कहा कि प्रशासन ने आदिवासियों के मामले पूरी तरह से असफल है. वो कहते हैं कि आदिवासी विकास के लिए विभागों के बीच जो तालमेल होना चाहिए, वैसा तालमेल नहीं है. उन्होंने कहा कि सत्ताधारी वाम मोर्चा आदिवासी मसलों को गंभीरता से नहीं लेती है. 

हालाँकि सरकार की तरफ़ से दावा किया गया है कि आदिवासियों के लिए बनाए गए अस्पताल में सभी सुविधाओं का इंतज़ाम है. उन्होंने यह दावा भी किया कि बच्चा जब अस्पताल लाया गया था तो वह स्वस्थ था और रात को अपनी माँ के साथ आराम से सोया था.

आदिवासी मामलों के मंत्री के राधाकृष्णन ने कहा कि इस मामले की जाँच के आदेश दिए गए हैं. क्योंकि जिस हालत में बच्चा अस्पताल पहुँचा था, उसकी मौत नहीं होनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा कि अस्पताल में उचित इलाज के सभी प्रबंध हैं. इसलिए इस मामले की पूरी जाँच की जाएगी. 

आदिवासी बच्चे की मौत के मामले को विपक्ष के द्वारा विधान सभा में उठाया जाना एक अच्छी ख़बर है. कम से कम इस कदम से सरकार को इस मसले पर जवाब देना पड़ा है. ऐसा कम ही होता है जब आदिवासियों के मसले विधान सभा या संसद में इतनी शिद्दत के साथ उठाए जाएँ.

संसद में तो पता नहीं आख़री बार कब किसी आदिवासी मसले पर विपक्ष ने सदन से वाक आउट किया था.

इसके साथ साथ विधान सभा में मामला उठने के बाद यह उम्मीद भी की जा सकती है कि आदिवासियों के लिए बनाए गए अस्पताल में स्थिति बेहतर बनाने का प्रयास होगा.

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