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विशाखापत्तनम कलेक्टर: आदिवासी इलाकों में विकास कार्यों पर अधिकारी न करें आपत्ति

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिला कलेक्टर और एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) के अध्यक्ष ए मल्लिकार्जुन ने कहा है कि कानूनों का सही इस्तेमाल करते हुए जिले के आदिवासी इलाकों का विकास जरूरी है.

मंगलवार को जिले के पडेरू में आईटीडीए की 72 वीं GBM की बैठक में कलेक्टर ने संबंधित अधिकारियों को कहा कि आदिवासी इलाकों के विकास के लिए कोई आपत्ति न उठाएं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब बिलकुल नहीं है कि कानून के दायरे के बाहर काम हो.

चिंतापल्ली एमपीपी ने उन्हें बताया कि वन विभाग एक सड़क के निर्माण पर आपत्ति कर रहा है, जिसे जिला स्तरीय समिति (डीएलसी) की बैठक में मंजूरी दी गई थी. इस पर कलेक्टर ने कहा कि डीएलसी का यह फैसला आदिवासी इलाकों में काम से काम सड़क जैसे बुनियादी सुविधाओं से जुड़ा है.

कलेक्टर ने वन अधिकारियों को निर्देश दिया कि जरूरत पड़ने पर वे ठेकेदारों के बजाय उन्हें (कलेक्टर) नोटिस जारी करें. उन्होंने साफ किया कि मेडिकल इमरजेंसी के दौरान एम्बुलेंस के आदिवासियों तक पहुंचने के लिए सड़कें जरूरी हैं.

पिछली GBM में उठाए गए मुद्दों पर उठाए गए कदमों का भी इस बैठक में जायजा लिया गया. यह फैसला लिया गया कि स्कूल निगरानी समितियों को पुनर्जीवित किया जाएगा और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की सेवाओं की निगरानी के लिए एक समिति नियुक्त की जाएगी.

सिकल सेल एनीमिया के मामले

एजेंसी इलाकों में 60,000 बच्चे हैं, और उनमें सिकल सेल एनीमिया के मामलों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इसके अलावा आदिवासी स्वास्थ्य को बेहतर करने को कोशिश में शहर के किंग जॉर्ज अस्पताल में आदिवासी सेल को मजबूत किया गया है, और वहां लंबे समय से काम कर रहे कर्मचारियों को ट्रांसफर कर उनकी जगह नया स्टाफ नियुक्त किया गया है.

आदिवासी अक्सर इस तरह की डोलियों का इस्तेमाल करते हैं

‘डोली’ बस्तियों की पहचान

आंध्र प्रदेश सरकार ने पिछले हफ्ते ही घोषणा की थी कि राज्य के आदिवासी इलाकों में ‘डोली’ बस्तियों की पहचान की जाएगी, ताकि उन तक सड़क संपर्क स्थापित किया जा सके.

यह वो बस्तियां हैं जहां से मोटर योग्य सड़क के अभाव में आदिवासियों के अक्सर अपने बीमारों और गर्भवती महिलाओं को डोली में बिठाकर एम्बुलेंस सेवा तक या अस्पताल तक ले जाने की खबरें आती हैं.

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता दावा करते हैं कि इसकी वजह से हर महीने कम से कम 5 से 10 मौतें हो जाती हैं, क्योंकि बीमार लोगों को सही समय पर इलाज नहीं मिलता.

इसके लिए वन विभाग इलाकों का सर्वेक्षण कर रहा है और जल्द ही एक रिपोर्ट पेश करेगा.

अधिकारियों ने वन विभाग से उस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले आदिवासी गांवों में सड़क बनाने की अनुमति देने का अनुरोध किया है.

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