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मेघालय में शुरू हुआ गारो आदिवासियों का वंगला त्योहार

आज यानि 12 नवंबर से मेघालय की गारो जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार, वंगला महोत्सव शुरू हो गया है. वंगला महोत्सव मेघालय में उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है. 

गारो आदिवासी समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक वंगला महोत्सव देश और दुनियाभर से पर्यटकों को भी आकर्षित करता है. इसे सौ ढोल का उत्सव (100 drum festival) नाम से भी जाना जाता है, और यह 1976 से मनाया जा रहा है.

इस त्योहार के दौरान, आदिवासी अपने देवता सलजोंग यानि सूर्य भगवान को खुश करने के लिए बलि चढ़ाते हैं. इस साल त्योहार सरकार द्वारा निर्धारित COVID-19 दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए आयोजित किया जा रहा है. 

आमतौर पर यह उत्सव दो दिनों तक चलता है, लेकिन कभी-कभी यह एक सप्ताह तक भी जारी रह सकता है.

वंगला त्योहार की अहमियत

वंगला त्योहार खेतों में मेहनत के अंत, और सर्दियों की शुरुआत का प्रतीक है. 

गारो इस त्योहार के जरिए अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित और बढ़ावा देते हैं. इस दौरान वो अपनी परंपरा का प्रदर्शन भी करते हैं.

सिर पर पंख और पारंपरिक पोषाकें पहले गारी आदिवासी (Image: Sentinel Assam)

कैसे मनाया जाता है त्योहार?

वंगला, जिसे सौ ढोल के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है, के दौरान गारो समुदाय के अलग अलग नृत्य किए जाते हैं.

यह नृत्य ढोल और बांसुरी पर बजाए जाने वाले लोक गीतों की धुन पर किए जाते हैं. बांसुरी भैंस के सींगों से बनी होती है.

त्योहार के पहले दिन रगुला नाम का समारोह होता है, जो गांव के मुखिया के घर में किया जाता है. इसमें अपने सिर पर पंख लगाते हैं, और पारंपरिक कपड़े पहनते हैं.

उत्सव के दूसरे दिन, जिसे कक्कट कहा जाता है, की शुरुआत ढोल की ताल पर नृत्य के साथ होती है.

पुरुष ढोल बजाते हैं और महिलाएं पारंपरिक नृत्य करती हैं. इस नाच को दामा डगोटा कहा जाता है, जो भगवान सालजोंग को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है.

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