6 दिसंबर को जनजातीय कार्य मंत्रालय (Tribal Affairs Ministry) ने दावा किया है कि विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों की जनसंख्या कम नहीं हुई है.
संसद में एक सवाल के जवाब में आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है. इस जवाब में मंत्रालय ने
बताया कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (ORGI) के कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) की आबादी में गिरावट नहीं हुई थी.
यह जवाब मंत्रालय द्वारा पिछले साल एक संसदीय पैनल को उपलब्ध कराए गए राज्य-वार जनगणना आंकड़ों से अलग है.
संसदीय कमेटी को दिये गए आंकड़ो में दिखाया गया था कि इस सदी के पहले दशक में कम से कम नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन आदिवासी समूहों की संख्या लगभग 40 फीसदी गिर गई थी.
पीवीटीजी कौन हैं?
पहले जिन्हें आदिम जनजातीय समूह (primitive tribal groups) कहा जाता था उन समुदायों को अब पीवीटीजी (PVTG) कहा जाता है.
इस सूचि में उन आदिवासी समुदायों को रखा गया है जिनकी संख्या में ठहराव है या फिर उनकी जनसंख्या लगातार घट रही है. इसके अलावा खेती-किसानी में जो समुदाय अभी भी निपुण नहीं हैं उन्हें भी इस सूचि में रखा गया है.
इसके अलावा आर्थिक पिछड़ापन, कम साक्षरता, मुख्यधारा से कटे रहना, और दूर दराज के जंगल और पहाड़ों के इलाकों में रहने वाले समुदायों को पीवीटीजी यानि विशेष रुप से पिछड़ी जनजाति माना गया है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे 75 समुदाय हैं जो 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं.
2016 में भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित और केके मिश्रा और अन्य द्वारा संपादित किताब, द पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स इन इंडिया: प्रिविलेजेस एंड प्रेडिकेमेंट्स (The Particularly Vulnerable Tribal Groups in India: Privileges and Predicaments) में कहा गया है कि सबसे अधिक संख्या में पीवीटीजी ओडिशा में 13 पीवीटीजी समुदाय हैं.
उसके बाद आंध्र प्रदेश में 12, फिर बिहार और झारखंड में 9, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 7, तमिलनाडु में 6 और केरल और गुजरात में 5 पीवीटीजी समुदाय हैं.
लेखकों ने कहा कि बाकी महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में 3 पीवीटीजी समुदाय है, कर्नाटक और उत्तराखंड में 2, राजस्थान, त्रिपुरा और मणिपुर में एक-एक पीवीटीजी समुदाय हैं. अंडमान में सभी चार जनजातीय समूहों और निकोबार द्वीप समूह में 2 समुदायों को पीवीटीजी के रूप में मान्यता प्राप्त है.
सभी 75 समुदायों की गणना करने वाली आखिर उपलब्ध जनगणना 2001 की थी. जिसके मुताबिक उनकी कुल संख्या लगभग 27.6 लाख थी.
किताब के परिचय में केके मिश्रा और सुरेश पाटिल लिखते हैं कि भारत सरकार की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि इनमें से अधिकांश समूह संख्या में छोटे थे. उन्होंने सामाजिक और आर्थिक प्रगति का कोई महत्वपूर्ण स्तर हासिल नहीं किया था.
ये खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशासनिक सुविधाओं वाले दूरदराज के इलाकों में बसे हुए थे. इस तरह अनुसूचित जनजातियों के बीच ये “सबसे कमजोर वर्ग” बन गया है, जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
पीएम-जनमन का उद्देश्य क्या है?
इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री द्वारा विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह विकास मिशन की घोषणा के बाद कैबिनेट ने हाल ही में 24 हज़ार करोड़ के प्रधान मंत्री-जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान को मंजूरी दे दी.
जो अनुसूचित जनजातियों, पीवीटीजी में सबसे पिछड़े लोगों तक सड़क, बिजली, घर, मोबाइल कनेक्टिविटी आदि जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाएगा.
इस पैकेज की पहली घोषणा इस साल की शुरुआत में बजट सत्र के दौरान हुई थी. जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि एक पीएम-पीवीटीजी विकास मिशन शुरू किया जाएगा. जिसके लिए सरकार तीन साल की अवधि में 15 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना रही है.
अधिकारियों ने कहा कि पैकेज में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यालय से बड़े पैमाने पर योगदान देखा गया है, जिन्होंने योजनाओं की देखरेख में विशेष रुचि ली.
यह कैसे काम करेगा?
इस पैकेज के लिए 29 नवंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई. आवंटन 24 हज़ार 104 करोड़ था, जिसमें से केंद्रीय हिस्सा 15 हज़ार 336 करोड़ होगा और संबंधित राज्य सरकारों का हिस्सा 8 हज़ार 768 करोड़ होगा.
सरकार ने कहा है कि जहां तक पैकेज के लॉन्च की बात है तो 22 हज़ार से कुछ अधिक गांव ऐसे हैं जहां पीवीटीजी रहते हैं और वहां इसे लागू किया जाएगा.
हालांकि, कार्यक्रम का कार्यान्वयन नौ मंत्रालयों के माध्यम से किया जाएगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि मौजूदा योजनाओं को इन पीवीटीजी-बसे हुए गांवों तक पहुंचाया जाए.
सरकार ने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उनमें 4.9 लाख पक्के घर बनाना, 8 हज़ार किलोमीटर लंबी संपर्क सड़कें बनाना, सभी घरों को पाइप से पानी से जोड़ना, 1 हज़ार मोबाइल चिकित्सा इकाइयां स्थापित करना, 2,500 आंगनवाड़ी केंद्र, 1 हज़ार बहुउद्देशीय केंद्र, 3 हज़ार गांवों में मोबाइल टावर स्थापित करना और 500 छात्रावासों का निर्माण करना शामिल है.
इस योजना इरादा 60 आकांक्षी पीवीटीजी ब्लॉकों में व्यावसायिक और कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने और लोगों को वन उपज के व्यापार में मदद करने के लिए 500 वन धन विकास केंद्र बनाने का भी है.
इसके अलावा इनमें से 1 लाख घरों को ऑफ-ग्रिड सौर ऊर्जा प्रणाली से जोड़ने और सोलर स्ट्रीट लाइट लाने का इरादा है.
पूरे 24 हज़ार करोड़ के आवंटन में से 19 हज़ार करोड़ से अधिक सिर्फ पीएम-आवास योजना के तहत पक्के घर बनाने और 8 हज़ार किलोमीटर की कनेक्टिंग सड़कें बनाने के लिए है. जिसे सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा.
जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने संसद में इस महाअभियान के बारे में बोलते हुए कहा है के ज़रिये पीवीटीजी गांवों में वह सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँगी.
मंत्रालय की तरफ से यह जानकारी दी गई है कि सड़कें, दूरसंचार कनेक्टिविटी, पानी और स्वच्छता का निर्माण करना है. इन प्रयासों का पैसा इन संबंधित मंत्रालयों के अनुसूचित जनजाति अंश (STC) में जाएगा. जहां से इसे इन समूहों के विकास के लिए आवंटित किया जाएगा.
जनजातीय कार्य मंत्रालय के 2023-24 के बजट अनुमान में पीवीटीजी के विकास के लिए सिर्फ 256.14 करोड़ आवंटित किए गए हैं.
चुनौतियाँ क्या हैं?
जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार इस महाअभियान की घोषणा के बाद से जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकारी 22 हज़ार पीवीटीजी गांवों से संपर्क कर रहे हैं ताकि उनमें से प्रत्येक की जरूरतों को समझा जा सके.
गांवों की जरूरतों का आकलन करने के लिए कई अधिकारियों को दौरे पर भेजा गया. जिसके बाद कैबिनेट के सामने एक विस्तृत प्रस्ताव रखा गया, जिसने नवंबर में पैकेज के शुरुआती अनुमानों को मंजूरी दे दी.
भले ही सरकार परियोजना को लागू करने के लिए आगे बढ़ रही है लेकिन उसके सामने मुख्य चुनौती वर्तमान डेटा की कमी है. जिसके बारे में सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा पहले ही सरकार को चेताया गया है.
जबकि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि उसने अभियान की प्रगति को मापने के लिए आधारभूत सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया है लेकिन अभी भी उनकी आबादी का सटीक और वर्तमान डेटासेट संकलित करना बाकी है.
यहां तक कि पिछले साल हाउस पैनल को सौंपे गए जनसंख्या डेटा के मुताबिक, जो 2011 की जनगणना पर आधारित था. सरकार महाराष्ट्र, मणिपुर और राजस्थान में पीवीटीजी की आबादी को सारणीबद्ध करने में असमर्थ थी.
इस तरह वर्तमान परियोजना इस अनुमान के साथ आगे बढ़ रही है कि पीवीटीजी की आबादी “लगभग 28 लाख” है. इसके अलावा सरकार ने अभी तक आधारभूत सर्वेक्षणों के किसी भी नतीजे को सार्वजनिक नहीं किया है.
इसने पिछले हफ्ते संसद को बताया कि 1951 के बाद से किसी भी जनगणना में पीवीटीजी का अलग से हिसाब नहीं लगाया गया है और न ही उनके सामाजिक आर्थिक सूचकांकों पर कोई डेटा हाउस पैनल को सौंपा गया है.
2013 में पीवीटीजी की स्थिति पर एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि सबसे पहले जनजातीय मामलों के मंत्रालय को विशेष रूप से पीवीटीजी समुदायों के लिए एक जनगणना डिजाइन और आयोजित करनी चाहिए ताकि न सिर्फ गणना की जा सके बल्कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास स्थिति का भी पता लगाया जा सके.