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‘ब्राडेंड’ होगी आदिवासियों की शराब, दुकानों पर शान से बिकेगी?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा है कि आदिवासी जो शराब बनाते हैं उसे एक नाम दिया जाएगा. इसके अलावा जल्दी ही आदिवासी शराब दुकानों पर बेची जाएगी. उन्होंने आदिवासियों से वादा किया है कि मार्च में राज्य की आबकारी नीति में सुधार किया जाएगा. 

मुख्यमंत्री ने ये बातें भीकनगांव विधानसभा क्षेत्र के तितरानिया और खारवा में भाजपा की चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कही हैं. शिवराज सिंह ने कहा कि आदिवासी समुदाय वर्षों से शराब बनाने में अनुभवी है. 

इसलिए उनके द्वारा बनाई गई आदिवासी ब्रांड की शराब भी मार्च के बाद गांव और शहरों की शासकीय दुकानों में बिकेगी. इसके समानांतर सरकार शराबबंदी अभियान भी चलाएगी. जब लोग शराब पीना छोड़ देंगे तो सरकार भी शराब नीति में संशोधन कर देगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वो मजाक नहीं कर रहे हैं और मार्च के बाद आबकारी नीति में संशोधन होगा. आदिवासी ब्रांड की शराब का नाम दे दिया जाएगा और जिसको पीना है पीए और जिसको नहीं पीना है वह नहीं पीए.

मध्य प्रदेश में महुआ से शराब बनाते हैं आदिवासी

सरकार की इस नीति से रोजगार के साथ आर्थिक विकास भी होगा. उन्होंने कहा कि जब डिस्टलरी से बनी शराब का रुपया बड़े व्यापारियों के जेब में जाता है, यदि उसका कुछ हिस्सा आदिवासियों की जेब में चला जाए तो बुरा क्या है? 

उन्होंने कहा कि मैं शराब पीने का पक्षधर नहीं हूं. लेकिन आदिवासी संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक और शादी व अन्य धार्मिक अवसरों पर शराब चढ़ाने याने धार देने की परंपरा है. 

इसलिए शराब के बगैर आदिवासी समुदाय में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है. वे इन अवसरों पर शासकीय दुकानों से शराब खरीद कर लाते हैं। यदि कोई आदिवासी शराब बनाता है तो आबकारी व पुलिस विभाग उन्हें परेशान करते हैं और इससे उन्हें मुक्ति मिलेगी.

यही नहीं इस वर्ग के लोग आबकारी प्रकरणों में न्यायालयों के चक्कर लगा रहे हैं उन्हें सरकार वापस लेगी. इसलिए मार्च के बाद आबकारी नीति में परिवर्तन कर आदिवासियों को शराब बनाने का अधिकार देंगे.

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार द्वारा आदिवासियों की भलाई के लिए पेसा एक्ट लागू किया जाएगा. इससे अन्य वर्ग के लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी. इस एक्ट के तहत उनके गठित समितियां आवश्यक निर्णय लेगी और इससे उनके विकास के द्वार खुलेंगे.

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