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सुविधाओं की कमी के कारण केरल की मालापंडारम जनजाति विलुप्त होने की कगार पर

केरल (Tribes of Kerala) की मालापंडारम जनजाति (Malapandaram tribe) की स्थिति आज बेहद खराब है. केरल विधानसभा चुनाव 2021 में मालापंडारम जनजाति ने पहली बार वोट दिए थे.

उस समय इन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस बारे में काफ़ी लिखा और दिखाया था.

लेकिन इनकी स्थिति को सुधारने के लिए अब तक कोई खास काम नहीं किया गया है. मालापंडारम जनजाति मुख्य तौर पर केरल के इडुक्की ज़िले में रहते हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक मालापंडारम आदिवासियों के 17 परिवार इडुक्की ज़िले के वंडिपेरियार और 16 परिवार परिमाडे और पेरूवंटनम में रहे रहें हैं.

इनकी घटती जनंसख्या आज के समय में एक बड़ी समस्या है. अब ये जनजाति विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हुई नज़र आती है.

मालापंडारम आदिवासी घने जंगलों से ढके क्षेत्र में निवास करते है. जिसके कारण इन तक कोई भी मूलभूत सुविधा नहीं पहुंच पाती.

क्या है समस्या

मालापंडारम आदिवासियों में शराब का अत्याधिक सेवन, अपने ही कुल में शादी, शिक्षा में कमी को इनकी घटती जनसंख्या के मुख्य कारण बताया जाता है.

इसके अलावा कच्चे मकान और पीने के साफ़ पानी की कमी भी घटती जनसंख्या के कारण हो सकते हैं.

यह आदिवासी आज भी अपने जीवनयापन के लिए पूरी तरह से जंगलों पर ही निर्भर हैं. ये जंगलों से शहद, लोबान और जायफल जम करते हैं. ये आदिवासी इन चीज़ों को स्थानीय बाज़ारों में बेचते हैं.

यहां के जानकारों का कहना है कि मालापंडारम आदिवासी पैसे बचाने या नई वस्तुएं खरीदने में ज्यादा रूची नहीं रखते हैं. जिसके कारण बाज़ार से जो भी पैसा इन्हें मिलते है, वे उसे बाज़ार में बिकने वाली शराब में उड़ा देते हैं.

सिर्फ पुरूष ही नही मालापंडारम समाज की महिलाएं और युवाओं के बीच भी शराब का सेवन अत्याधिक होता है.

लेकिन इस आदिवासी समुदाय की घटती जनसंख्या के ये कारण गिनवाना दरअसल सही तरीका नहीं है. इस दृष्टि से ऐसा लगता है कि ये आदिवासी खुद ही अपनी तबाही के लिए ज़िम्मेदार हैं.

यह बात सही है कि नशा इनकी बर्बादी का एक कारण हो सकता है. लेकिन ज़रूरत इस बात की भी है कि इस समुदाय के नशे में डूब जाने के कारणों का पता लगाया जाए.

इसके अलावा भूख और अन्य कारणों पर भी ध्यान देना ज़रुरी है.

मालापंडारम समुदाय की 60 वर्षीय चेलम्मा से बात करके पता चला कि इनकी बस्तियों में पीने के पानी की भी काफी दिक्कत है.

चेलम्मा बताती है की सतराम विभाग द्वारा उनके परिवार के लिए जंगल की ऊँची चोटी पर घर बनाया गया था. इतनी ऊँचाई में रहने के कारण उन्हें हर दिन बस एक बर्तन ही पानी मिलता है. जो इनका बेटा पास के झरने से लाता है.

लेकिन गर्मियों में उनका बेटा और उसका परिवार जंगल की ओर चले जाते हैं क्योंकि इतने कम पानी के सहारे गर्मियों में रहना बेहद कठिन है.

चेलम्मा कहती है की 2010 तक उनका पूरा समुदाय बाहरी दुनिया के संपर्क में नहीं था. लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे सभी मुख्यधारा समाज की ओर स्थानांतरित करने लगे.

उन्होंने कहा, “ जब मेरे समाज के लोगों ने पहली बार वोट दिया था. तब ये बड़ा चर्चा में रहा. लेकिन इसके बाद भी हमारी बस्तियों में कोई भी सुधार कार्य नहीं हुए.”

यह भी कहा जाता है कि मालापंडारम जनजाति में अपने ही कुल में शादी करा दी जाती है. जिसके कारण आंतरिक प्रजनन की समस्या उत्पन्न होती है. हालांकि अभी तक इनके बच्चों में कोई भी जेनेटिक बीमारियां नहीं देखी गई है.

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