गृहमंत्री अमित शाह कई बार यह दावा कर चुके हैं कि छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ से साल 2026 के मार्च महीने तक नक्सलवाद ख़त्म कर दिया जाएगा.
लेकिन हाल ही में उन्होंन एक बयान में यह कहा है यदि ‘सलवा जुडूम’ को बंद नहीं किया गया होता तो यह काम साल 2020 में ही पूरा हो सकता था.
यह बयान उन्होंने इंडिया गठबंधन की तरफ से उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए गए जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी की आलोचना में दिया है.
अमित शाह के इस बयान के जवाब में सुदर्शन रेड्डी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नक्सलवाद से लड़ने के ख़िलाफ़ नहीं था.
जस्टिस रेड्डी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह स्पष्ट था कि जिस तरह से सलवा जुडूम में आदिवासी लड़के लड़कियों को हथियार थमा दिये गए थे वह ग़ैर क़ानूनी और असवैंधानिक था.
9 सितंबर को देश के उपराष्ट्रपति पद का चुनाव है. इस चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी की सलवा जुडूम के नाम पर आलोचना ने एकबार फिर छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में नक्सलवाद से निपटने की रणनीति पर बहस छेड़ दी है.
सलवा जुडूम क्या था?
‘सलवा जुडूम’ शब्द गोंडी भाषा का है. इसका अर्थ शांति यात्रा या शांति अभियान है.
साल 2005 में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में इसकी शुरुआत हुई.
इसके तहत आदिवासी युवाओं को स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) बनाया गया.
इस अभियान के तहत नक्सलियों से लड़ने के लिए उनके हाथों में हथियार थमा दिए गए. गांव-गांव में कैंप बने और हजारों लोग अपने घर छोड़कर उन कैंपों में रहने लगे.
आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य नक्सलवाद के खिलाफ आदिवासियों को खड़ा करना था.
लेकिन देश भर में इस अभियान की कड़ी आलोचना हुई.
इस अभियान की सबसे बड़ी आलोचना यह थी कि बिना किसी ट्रेनिंग या सामाजिक सुरक्षा की गारंटी के आदिवासी लड़के लड़कियों को बंदूक थमा कर युद्ध में झोंक दिया गया था.

