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केरल के आदिवासी संगठनों ने क्यों की हड़ताल की घोषणा?

जब से सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में वर्गीकरण का फैसला सुनाया है तभी से इस फैसले को लेकर बहस छिड़ी हुई है. समाज के बुद्धीजीवी वर्ग और कानून के जानकारों से लेकर पिछड़े वर्गों के हितों में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता इस बहस का हिस्सा हैं.

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के एससी और एसटी सांसदों को आश्वासन दिया था कि क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने संबंधी कोर्ट की टिपण्णी पर सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी. लेकिन पीएम मोदी के इस बयान से केरल के आदिवासी और दलित संगठन संतुष्ट नहीं है.

सरकार के इस बयान से असंतुष्ट केरल के आदिवासी और दलित संगठनों ने संयुक्त रुप से एक बड़ी घोषणा की है.

केरल के आदिवासी और दलित संगठनों ने 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने के फैसले के विरोध में पूरे केरल राज्य में हड़ताल करने का ऐलान किया है.

आदिवासी-दलित संगठनों के नेताओं द्वारा दिए गए एक संयुक्त बयान से इस विरोध प्रदर्शन की पुष्टि हुई है.

इस बयान में नेताओं ने आरोप लगाया है कि इस फैसले के माध्यम से एससी और एसटी लिस्ट को जाति के आधार पर बांटने की कोशिश की जा रही है.

हस्ताक्षर किए गए संयुक्त बयान में कहा गया है कि इस फैसले का उद्देश्य एससी और एसटी के भीतर क्रीमी लेयर की शुरुआत करना है.

आदिवासी और दलिस संगठनों के नेताओं ने कहा कि भाजपा ने भले ही यह भरोसा दिलाया है कि वह क्रीमी लेयर को लागू नहीं करेगी लेकिन उसने ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है जिससे यह पता चले कि क्रीमी लेयर एससी और एसटी सूचि में विभाजन का आधार भी नहीं बनेगी.

संगठनों के बयानों के मुताबिक उनकी मुख्य मांग यह है कि संसद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए कानून पारित करे.

संगठनों ने कहा कि यह राज्यव्यापी हड़ताल भीम आर्मी के भारत बंद और विभिन्न दलित-बहुजन आंदोलनों का हिस्सा है.

अब देखना यह है कि इन संगठनों की मांगों से केंद्र सरकार किस तरह निपटती है.

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