Mainbhibharat

भारतीय वूमेन हॉकी टीम की होनहार आदिवासी लड़कियां कहां से आती हैं

30 दिसबंर को हॉकी ओलंपिक्स क्वालीफायर्स 2024 के लिए भारतीय वूमेंस हॉकी टीम  का ऐलान किया गया है. इस टीम में कई आदिवासी लड़कियां शामिल हैं.  इनमें सलीमा टेट मिड फील्डर (Salima Tete, Mid fielder), संगीता कुमारी फॉर्वरड (Sngita Kumari, Forward), लालरेमसियामि (Lalremsiami Hmarzote, Forward), बिचू देवी खारीबाम गोलकीपर (Bichu Devi Kharibam, Goalkeeper), निकी प्रधान डिफेंडर (Nikki Pradhan, Defender) और ब्यूटी डुंगडुंग मिडफिल्डर शामिल हैं. 

गरीबी और संघर्ष में तपकर उभरी हैं सिमडेगा की ये बेटियां

सलीमा टेटे का परिवार सिमडेगा के बड़की छापर गांव में आज भी एक कच्चे मकान में रहता है. उनके पिता सुलक्षण टेटे भी स्थानीय स्तर पर हॉकी खेलते रहे हैं. 

उनकी बेटी सलीमा ने जब गांव के मैदान में हॉकी खेलना शुरू किया था, तब उनके पास एक अदद हॉकी स्टिक भी नहीं थी. सलीमा के हॉकी के सपनों को पूरा करने के लिए उनकी बड़ी बहन अनिमा ने बेंगलुरू से लेकर सिमडेगा तक दूसरों के घरों में बर्तन मांजने का काम किया. 

वह भी तब, जब अनिमा खुद एक बेहतरीन हॉकी प्लेयर थीं. उन्होंने अपनी बहनों के लिए पैसे जुटाने में अपना करियर कुर्बान कर दिया. संगीता कुमारी भी झारखंड के सिमडेगा जिले से आर्थिक तौर से कमजोर परिवार से आती हैं. 

उनके परिवार में मां-पिता के अलावा पांच बहनें और एक भाई है. उनका परिवार थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी और मजदूरी से घर का खर्च चलता है. 

पिछले ही साल संगीता को तृतीय श्रेणी में रेलवे की नौकरी मिली है. अब इस नौकरी की बदौलत वह घर-परिवार का जरूरी खर्च और बहनों की पढ़ाई का खर्च उठा रहीं हैं.

सिमडेगा की ही ब्यूटी का सफर भी कम संघर्षशील नहीं रहा

ब्यूटी का परिवार ऐसा जिनके घर में सभी ने हॉकी खेली थी.  पिता अम्ब्रोस डुंगडुंग भी हॉकी के नेशनल प्लेयर रह चुके हैं. हुनर ऐसा कि कई संस्थानों ने कोच बनने का ऑफर भी दिया. लेकिन पत्नी बीमार है. इसलिए घर छोड़ना मुमकिन नहीं था.  

बेटी के हाथों में हॉकी होगी, यह सपना पिता ने देखा था और आर्थिक तंगी के चलते ब्यूटी को हॉकी प्लेयर बनाने के लिए अम्ब्रोस ने खेत गिरवी रख दिए. इसके बाद मुंबई जाकर मज़दूरी भी की, पैसे भी उधार लिये. 

ब्यूटी डुंगडुंग ने पहली बार 2016 में अंडर-14 खिलाड़ी के रूप में लोगों का ध्यान खींचा था. इसके बाद कई मौकों पर इनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. 

डुंगडुंग ने दिसंबर 2022 में वालेंसिया, स्पेन में FIH महिला राष्ट्रीय कैंप में सीनियर भारत में आगमन  किया और अब उन्हें फिर से मौका मिला है. 

ये तो केवल तीन नाम हैं , इस क्षेत्र ने न जाने कितने हॉकी प्लेयर दिए हैं और इतने नामों में से केवल तीन को चुनना बिलकुल भी आसान नहीं रहा होगा

मणिपुर और मिज़ोरम के आदिवासी समुदाय की बेटियां  भी इस टीम में शामिल हैं

मणिपुर के थोबाल की बिचू देवी की शुरुआत एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में हुई थी. लेकिन जब वह स्थानीय चयन में सफल नहीं हो पाई तो उनके पिता ने उन्हें हॉकी चयन के लिए जाने के लिए प्रेरित किया और उनका चयन हो गया. 

2018 से राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी खेल रहीं हैं और उन्हें हांगझू में एशियाई खेलों 2023 के लिए भारतीय टीम के हिस्से के रूप में चुना गया और भारत ने कांस्य पदक भी जीता.

लैलरेमसैमी जो मणिपुर के  कोलास्सिब जिले से आती हैं , उन्हें कोच बलजीत सिंह ने पहले अंडर 18 एशियन चैंपियनशिप 2016 में टीम का हिस्सा बनाया और तब से वे अपने प्रदर्शन के बल पर आगे बढ़ती रहीं हैं. 

2019 में उनके प्रदर्शन ने उन्हें FIH राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी  दिलाया। अपने प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए लैलरेमसैमी ने 2021 जूनियर विश्व कप में कप्तानी भी की थी.

निक्की प्रधान भी बिहार के खरवार भोगता समुदाय से आती हैं और इनके शुरुवात से अच्छे प्रदर्शन के चलते इन्हें भी भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बनाया गया है.

भारतीय वूमेन हॉकी टीम मे आदिवासी लड़कियां की कहानी में एक बात समान मिलती है कि ये सभी गरीब या अति ग़रीब परिवारों से आती हैं. इन लड़कियों ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर यह मुकाम हासिल किया है. 

Exit mobile version