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आदिवासी भले की रिपोर्ट पर 8 साल से विचारों का इंतज़ार, ज़मीन लेनी होती तो आ जाता अध्यादेश

2013 में प्रोफ़ेसर वर्जिनियस खाखा (Virginius Xaxa) की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी (High Level Committee) ने एक रिपोर्ट जनजातीय कार्य मंत्रालय को सौंपी. इस कमेटी का गठन आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक, स्वास्थ्य और शैक्षिक स्थिति का पता लगाने के लिए किया गया था. 2013 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में 108 सिफ़ारिश सरकार को दे दीं. 

लेकिन 8 साल बाद भी इस कमेटी की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों पर सरकार ने अभी तक कोई फ़ैसला नहीं किया है. इस सिलसिले में 8 फ़रवरी को सरकार की तरफ़ से लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा गया है कि यह रिपोर्ट अभी सरकार के विचाराधीन है. 

सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि इस कमेटी की रिपोर्ट को केन्द्र सरकार के 20 मंत्रालयों और राज्यों के 28 जनजातीय कल्याण विभागों को उनके विचार प्रस्तुत करने के लिए भेजा गया था. 

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि अभी तक 20 मंत्रालयों और 16 राज्य सरकार ने अब तक अपने विचार भेजे हैं. लेकिन अभी भी 12 राज्य सरकारों ने इस रिपोर्ट पर अपने विचार नहीं भेजे हैं. 

इस जवाब में सरकार ने यह नहीं बताया है कि इन राज्यों से कब तक विचार मिल जाने की उम्मीद है. इसके साथ ही यह भी नहीं कहा गया है कि जब सभी राज्यों से विचार प्रस्तुत कर दिए जाएँगे तो क्या सरकार इस कमेटी की रिपोर्ट को लागू कर देगी. 

प्रोफ़ेसर खाखा के अलावा कमेटी में 6 सदस्य और थे

प्रोफ़ेसर खाखा के अलावा इस कमेटी के 6 सदस्य और थे. इस कमेटी ने 431 पेज की एक विस्तृत रिपोर्ट जनजातीय मंत्रालय को सौंपी थी. 

इस कमेटी ने राज्यवार आदिवासी जनसंख्या, ग़ैर आदिवासी जनसंख्या और आदिवासी जनसंख्या का अनुपात, आर्थिक गतिविधियां और बैंकिंग व्यवस्था तक आदिवासी आबादी की पहुँच, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मसलों पर विस्तार से चर्चा की है. 

अपनी सिफ़ारिशों की शुरूआतें में ही कमेटी ने यह नोट किया है कि आज़ाद भारत में भी आदिवासी भारत के लिए उपनिवेशवादी व्यवस्था के मॉडल पर ही व्यवस्था बनाई गई है. 

इस कमेटी ने कई क़ानूनों का ज़िक्र किया है जो केन्द्र या राज्यों ने पास किए हैं. कमेटी ने बताया है कि इन क़ानूनों का आदिवासी हक़ों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. 

कमेटी की यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो देश में आदिवासी आबादी की स्थिति, उनकी समस्याओं, चुनौतियों और संभावित समाधानों पर बात करती है. लेकिन अफ़सोस की जो सरकार पलक झपकते बड़े बड़े फ़ैसले लेती है, वही सरकार इस रिपोर्ट पर 8 साल से विचारों का इंतज़ार कर रही है. 

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