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पीएम मोदी मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने का साहस दिखाएं

(Manipur News) मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घूमाने और गैंगरेप की वारदातों की जांच सीबीआई से कराने का केंद्र सरकार का फैसला उचित है. इस वारदात का वीडियो वायरल (Viral Video) हुआ था जिसमें भीड़ दो कुकी महिलाओं (Kuki Women) को निर्वस्त्र कर सड़क पर घूमा रही है. 

इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के अलावा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस मुकदमे की सुनवाई मणिपुर के बाहर किसी अदालत में करवाने की अनुमति भी मांगी है. केंद्र सरकार के इस कदम को एक सही दिशा में उठाया गया कदम कहा जा सकता है.

लेकिन इन दोनों ही फैसलों से यह भी साफ़ होता है कि केंद्र सरकार भी यह मानती है कि मणिपुर में प्रशासन से निष्पक्ष तरीके से इस वारदात की जांच और मुकदमे की उम्मीद नहीं की जा सकती है.  

यह भी कहा जा रहा है कि सरकार का यह कदम दरअसल सुप्रीम कोर्ट का मणिपुर पर कड़े रुख का नतीजा भी हो सकता है.

दरअसल इस वारदात के बारे में यह भी पता चला है कि इन दो महिलाओं के साथ यह वारदात पुलिस की मौजूदगी में हुई थी. इसके अलावा जिस तरह से मणिपुर प्रशासन इस मामले में उस समय तक निष्क्रिय रहा जब तक कि यह वीडियो वायरल नहीं हुआ, वहां के हालातों को समझना मुश्किल नहीं है.

हमने मणिपुर में यह पाया कि राज्य में मैतई और कुकी के इस संघर्ष में समाज पूरी तरह से बंट गया है. वहां अब शायद कोई विरला ही मिलता है जो संतुलित बात करता है. ऐसी सूरत में प्रशासन से किसी निष्पक्षता की उम्मीद की ही नहीं जा सकती है.

लेकिन मणिपुर के हालातों के इतने संगीन इसलिए होते जले गए क्योंकि राज्य के नेतृत्व की भूमिका इस दौरान संदिग्ध रही है. इस बात को और स्पष्ट तरीके से कहें तो राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह मणिपुर के हालातों को संभालने में नाकाम रहे, यह कहना दरअसल उनके प्रति काफ़ी नरम रवैया होगा. क्योंकि सच्चाई ये है कि उन्होंने काफ़ी हद तक मणिपुर में हालातों को बिगाड़ने का काम किया है.

जब इस हिंसा की पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश की जाती है तो ऐसी कई बातें पता चलती हैं जिससे लगता है कि खुद मुख्यमंत्री इस हिंसा के लिए ज़मीन और हालात तैयार कर रहे थे.

लेकिन केंद्र सरकार अभी भी मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की जवाबदेही तय करने से बच रही है. मणिपुर में चल रही हिंसा कुछ नियंत्रित हुई है. पिछले एक हफ़्ते में यानि 17 जुलाई के बाद कम से कम हिंसा में किसी की जान नहीं गई है.

लेकिन अभी भी राज्य में गोलीबारी हो रही है. मणिपुर में लोग अभी भी सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं. अभी भी हज़ारों लोग रिलीफ़ कैंपों में रह रहे हैं. 

मणिपुर में हुई हिंसा का असर मिज़ोरम,नागालैंड, असम और त्रिपुरा जैसे पड़ोसी राज्यों में देखा जा रहा है. मिज़ोरम और त्रिपुरा में कुकी आदिवासियों के समर्थन में बड़े प्रदर्शन हुए हैं. मिज़ोरम से मैतई समुदाय के लोगों को पलायन करना पड़ा है.

हमने मणिपुर में घाटी और पहाड़ी दोनों ही इलाकों में यह पाया कि मैतई और कुकी समुदाय के बीच की दरारें अब गहरी और चौड़ी खाई बन चुकी हैं. इस खाई को भरने में बरसों का समय लग सकता है. 

लेकिन इस खाई को पाटने की शुरुआत़ की पहली शर्त मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाना है. क्योंकि उनके पद पर रहते हुए यह तो संभव है कि सेना, अर्ध्द सैनिक बलों और पुलिस के दम पर राज्य में शांति कामय कर दी जाए. 

लेकिन कुकी-मैतई के बीच अविश्वास की खाई को पाटा नहीं जा सकेगा. 

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