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आकांक्षी ज़िले = कुपोषण+भूख+बीमारी = आदिवासी

देश की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के लोगों को बधाई दी. प्रधान मंत्री मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों और लक्ष्यों के बारे में भी विस्तार से बात की है. 

उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार के समय में देश के सोचने का नज़रिया बदल गया है. अब भारत आत्मविश्वास से भरा देश है. जो फ़ैसले लेने और उन्हें लागू करने की क्षमता और विश्वास रखता है. 

अपने भाषण में उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पक्षों का ध्यान रखा. मसलन उन्होंने जम्मू-कश्मीर-लद्दाख से लेकर नॉर्थ ईस्ट के बारे में बात की और अपनी सरकार की उपलब्धियों और योजनाओं का ज़िक्र किया. 

प्रधान मंत्री ने कहा, “21वीं सदी में भारत को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए भारत के सामर्थ्य का सही इस्तेमाल, पूरा इस्तेमाल जरूरी है. इसके लिए जो वर्ग पीछे है, जो क्षेत्र पीछे है, हमें उनकी हैंड-होल्डिंग करनी ही होगी”

इसके आगे प्रधान मंत्री ने कहा, “हमारा पूर्वी भारत, नॉर्थ ईस्ट, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख सहित पूरा हिमालय का क्षेत्र हो, हमारी कोस्टल बेल्ट या फिर आदिवासी अंचल हो, ये भविष्य में भारत के विकास का बड़ा आधार बनेंगे.”

“आज नॉर्थ ईस्ट में कनेक्टिविटी का नया इतिहास लिखा जा रहा है. ये कनेक्टिविटी दिलों की भी है और इंफ्रास्ट्रक्चर की भी है. बहुत जल्द नॉर्थ ईस्ट के सभी राज्यों की राजधानियों को रेल सेवा से जोड़ने का काम पूरा होने वाला है”

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के आदिवासियों का भी ज़िक्र किया, उन्होंने कहा “देश के जिन ज़िलों के लिए ये माना गया था कि ये पीछे रह गए, हमने उनकी आकांक्षाओं को भी जगाया है. देश मे 110 से अधिक आकांक्षी ज़िलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सड़क, रोज़गार, से जुड़ी योजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है. इनमें से अनेक जिले आदिवासी अंचल में हैं”

देश में 100 से ज़्यादा ज़िले ऐसे हैं जिन्हें आर्थिक और सामाजिक तौर पर काफ़ी पिछड़े ज़िलों में शुमार किया गया है. यानि इन ज़िलों में मामूली माने जाने वाली सुविधाएँ भी नहीं हैं.

मसलन स्कूल, प्राइमरी हेल्थ सेंटर, सड़क या पीने का साफ़ पानी. इन ज़िलों के लोगों में कुपोषण और बीमारियाँ ज़्यादा मिलता है. 

लालक़िले की प्राचीर से जब प्रधान मंत्री बोला करते हैं तो उनका उद्देश्य अपनी सरकार की उपलब्धि और आने वाले समय के लिए योजना देश के सामने रखना होता है. प्रधान मंत्री सदा से ही इन भाषणों में अपनी सरकारों की पीठ थपथपाते रहे हैं. 

आकांक्षी ज़िले मतलब जो ज़िले पोषण, शिक्षा और दूसरी सुविधाओं के मामले में बेहद पिछड़े हैं.

फिर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की तो बात ही अलग है. वो कहते हैं 110 आकांक्षी ज़िले, तो लगता है कि ये देश के वो ज़िले हैं जो आगे बढ़ने को आतुर आधुनिक सुविधाओं से लैस ज़िले हैं.

उनकी बातों से ऐसा लगता ही नहीं की यहाँ पीने का साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं है. यहाँ बाल मृत्यु दर देश के बाक़ी ज़िलों से अधिक है. यहाँ भीषण कुपोषण है. 

प्रधान मंत्री जब देश के सबसे अधिक पिछड़े ज़िलों की बात करते हैं दो कहते हैं कि इनमें अनेक ज़िले आदिवासी अंचल में है.

यह बात भी शायद इसलिए कह दी गई कि कहीं यह सवाल ना किया जाए कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज़ादी के सालगिरह पर आदिवासी का ज़िक्र तक नहीं किया है. 

मुझे लगता है कि जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि आज से 25 साल बाद जब कोई प्रधानमंत्री लालक़िले के प्राचीर से बोलेंगे तो वो आज किए जा रहे संकल्पों को उपलब्धि के तौर पर गिनवा रहे होंगे. 

ऐसा ही होता रहा है और होना भी चाहिए. आज प्रधान मंत्री जिन उपलब्धियों को गिनवा रहे थे, उनमें से ज़्यादातर के बीज कम से कम 25 साल पहले ही पड़े होंगे.

उन्होंने जो कहा उससे मेरा कोई मतभेद या आपत्ति नहीं है. एक नागरिक के तौर पर मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ कि उन्होंने जो बातें देश के विकास के लिए कही हैं उन बातों को लागू करने में जी जान से देश के बाक़ी नागरिकों के साथ जुट जाऊँ.

लेकिन मुझे लगता है कि आज के भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदिवासियों की बात को ढंग से कहने में कोताही कर गए. बल्कि यूँ कहना चाहिए कि वो आदिवासियों की बात विस्तार से करने में क़तरा गए. 

उसकी वजह साफ़ है कि जब वो आकांक्षी यानि देश सबसे अधिक पिछड़े ज़िले जहां मानव विकास सूचकांक के हर पैमाने पर हम फ़ेल हुए हैं, कि बात करते हैं तो यह नहीं बताते की देश के ज़्यादातर आदिवासी बहुल ज़िले, इन ‘आकांक्षी’ ज़िलों में शामिल हैं. 

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अगर आज के अपने भाषण में आदिवासियों की बात करने से क़तरा क्यों गए ? क्योंकि इस मोर्चे पर उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है. केन्द्र में उनकी सरकार का रिकॉर्ड बताता है कि चाहे वो आदिवासियों के संवैधानिक और क़ानूनी हक़ों की बात हो या फिर उनके पहचान का मसला, यह सरकार आदिवासियों के साथ नहीं खड़ी है. 

उनकी सरकार मौक़े के हिसाब से भाषा कि विविधता, आदिवासियों के अधिकार या समावेशी विकास की बात कर लेती है.

लेकिन सिद्धांत: उनकी सरकार और उनका संगठन यानि उनकी पार्टी और आरएसएस यह मानती है कि भूमि अधिग्रहण, वन अधिकार या पेसा जैसे क़ानून देश के विकास में बाधा हैं.

इसके अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को भी यह सरकार कोई बहुत अच्छी नज़र से नहीं देखती है. 

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