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मुख्यमंत्री माझी के मंत्रिपरिषद में 4 आदिवासी और 2 दलित नेताओं को जगह मिली

Bhubaneswar: Odisha Chief Minister-designate Mohan Charan Majhi takes oath during the swearing-in ceremony of the new Odisha government, in Bhubaneswar, Wednesday, June 12, 2024. (PTI Photo)(PTI06_12_2024_000318B)

मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी (Mohan Charan Majhi) के नेतृत्व में ओडिशा की नई मंत्रिपरिषद में चार आदिवासी और दो दलित हैं.

यह कदम भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा राज्य में 2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजू जनता दल (BJD) के दलित-आदिवासी वोट बैंक में सफलतापूर्वक सेंध लगाने के बाद उठाया गया है.

इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के लिए आरक्षित 33 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की. जबकि बीजद और कांग्रेस ने नौ सीटों पर जीत दर्ज की.

आदिवासी बहुल मयूरभंज जिले में बीजेपी ने सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की है. जबकि दलितों के लिए आरक्षित 24 सीटों में से 14 पर जीत हासिल की.

पार्टी ने आदिवासियों के लिए आरक्षित पांच लोकसभा क्षेत्रों में से चार और दलितों के लिए आरक्षित सभी तीन लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की है. ​​पार्टी का वोट शेयर 2019 के चुनाव में जीते गए 32 फीसदी से 8 फीसदी बढ़ा है.

राज्य में बुधवार को शपथ लेने वाले 16 मंत्रियों में चार आदिवासी हैं जबकि दो दलित हैं.

भाजपा ने संथाली आदिवासी मोहन माझी को अपना पहला मुख्यमंत्री बनाया है. यह कदम झारखंड में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों के साथ-साथ निचली जातियों की पार्टी होने का नैरेटिव स्थापित करने के उद्देश्य से उठाया गया है.

ओडिशा के मुख्यमंत्री तो आदिवासी हैं ही लेकिन ओडिशा की राजनीति के इतिहास में पहली बार दो आदिवासी कैबिनेट मंत्री हैं – रबी नारायण नाइक और नित्यानंद गोंड. जबकि कोल्हा आदिवासी गणेश राम सिंह खुंटिया को स्वतंत्र प्रभार वाला राज्य मंत्री बनाया गया है.

भाजपा ने एक दलित को भी कैबिनेट मंत्री बनाया है. जबकि भद्रक जिले से एक अन्य युवा दलित राजनेता को स्वतंत्र प्रभार वाला राज्य मंत्री बनाया गया है. कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री के रूप में एक महिला भी है, जो ओडिशा में पहली बार हुआ है. जबकि एक अन्य महिला विधानसभा की अध्यक्ष होंगी.

16 मंत्रियों में से नौ उच्च जाति के हैं, जिनमें राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री सुरेश पुजारी एकमात्र ब्राह्मण चेहरा हैं. जबकि उपमुख्यमंत्री कनक वर्धन सिंहदेव क्षत्रियों के एकमात्र प्रतिनिधि हैं.

नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद में कोई दलित नहीं था लेकिन तीन आदिवासी थे, जिनमें से एक कैबिनेट मंत्री था. जगन्नाथ सरका, जो पिछली सरकार में एससी/एसटी विकास मंत्री थे, चुनाव हार गए.

राजनीतिक विश्लेषक रबी दास ने कहा कि माझी को मुख्यमंत्री और आदिवासियों को कैबिनेट मंत्री बनाकर भाजपा ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह उच्च जातियों की पार्टी नहीं है, जैसा कि हमेशा से माना जाता रहा है.

दास ने कहा, “यह राज्य की राजनीति में स्पष्ट बदलाव है, जहां 40 प्रतिशत आबादी आदिवासियों और दलितों की है. अब तक मुख्यमंत्री उच्च जातियों से होते थे, लेकिन माझी मंत्रिमंडल में उच्च जातियों की हार हुई है और वंचित जातियों की जीत हुई है और इसका राज्य की राजनीति और नीतियों पर कई तरह से असर पड़ेगा.”

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक ज्ञान रंजन स्वैन भी इस बात से सहमत हैं कि भाजपा का राजनीतिक संदेश उसके मंत्रिमंडल की संरचना में एकदम सही रहा है.

उन्होंने कहा कि बहुत से लोग नवीन पटनायक को एक प्रगतिशील मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं, लेकिन उनका मंत्रिमंडल हमेशा उच्च जाति के लोगों और तटीय जिलों के लोगों के पक्ष में रहा है. एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाकर और मंत्रिमंडल में तीन और आदिवासियों को शामिल करके, भाजपा स्पष्ट रूप से उन आदिवासियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, जिन्होंने 90 के दशक के अंत में पार्टी का समर्थन किया था लेकिन बाद में बीजेडी का समर्थन किया.

स्वैन ने आगे कहा कि भाजपा स्पष्ट रूप से दलितों और आदिवासियों के सामाजिक गठबंधन पर नज़र रख रही है. लेकिन उन्हें आदिवासियों, दलितों और ओबीसी के लिए भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है, जो संख्यात्मक रूप से उच्च जातियों से बेहतर हैं.

इस बार के ओडिशा विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर बहुमत हासिल किया. इसी के साथ राज्य में 24 साल बाद बीजेडी सत्ता से बाहर हुई. बीजेपी को 147 सीटों में 78 सीटें मिलीं.

वहीं नवीन पटनायक साल 2000 से लगातार 2024 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. वो इस पद पर 24 साल और 98 दिन तक रहे. अब प्रदेश में पहली बार बीजेपी सरकार बनने पर माझी मुख्यमंत्री बने हैं.

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